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छ श्रीमद्विजयानदसूरि कृत, जो मुफ वीतक बीत्यो वीतसे रे। तुं जाने करतार ॥ कुं० ॥४॥ जो जगपूस्ण वैद्य कहाश्यो रे । रोग करे सब दूर । तिनही अपणा रोग दिखाश्ये रे। तो होवे चिंता चूर ॥ कुं० ॥५॥ तुं मुफ साहिब वैद्य धनवंतरी रे।कर्म रोग मोह काट । रतनत्रयी पथ मुफ मन मानीयो रे दीजो सुखनो थाट ॥ कुं० ॥६॥ निर्गुणलोह कनक पारस करे रें। मांगे नही कुब तेह ॥ जो मुफ बातम संपद निर्मली रे॥दासनणी अब देह ॥कुं॥७॥
इति श्री कुंथुनाथ जिन स्तवनम् ॥ १७॥ .
श्री अरनाथ जिन स्तवन । चंप्रन्नु मुखचंड सखी मोने देखणदे ए देशी ॥
अरेजिनेश्वरचंद सखी मोने देखणदे । गत कलिमल मुख धंद ॥ स० ॥ त्रिजुवन नयनानंद । स । मोह तिमर नयो