SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्तवनावली. १एए ww जणदार ॥ चा ॥ सुणतां समकित उपजेरे । मिथ्या तिमिर विनाश ॥ चा ॥४॥ संघ सकल श्राग्रह करी रे। विनती करे मनोहार ॥ चा ॥ नव्य जिव प्रतिबोधवारे । गुरुजी करे चौमास ॥च ॥५॥ संघ सकल हवे आदरेरे । जिन नक्की बहुमान ॥ चा ॥ नवनवी पूजा प्रनावनारे अहाई महोबवहा॥चा ॥६॥ समकीत नीरमलजेथीरे । तेह तणा बहुमान ॥ चा ॥ उबव रंग वधामणारे। वा ने जय जयकार ॥७॥सहीयर सवी टोले मलीरे ॥श्रावे गुरु दरबार ॥ चा ॥ चहुँ गती चुरण साथीयोरे। करती गुरुने पाय ॥ चा ॥७॥ गुणवती गावे घौवलीरे नाव नलेजदार ॥चा॥राजनग हारे। श्रानंद मंगल काठ॥चा ॥ए । उत्तम गुरु गुण गावंतारे । नांगे नवनी पास ॥ च ॥ वीर विजय मुनि दुई रहारे । 5
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy