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१७.
श्रीमघीरविजयोपाध्याय कृत,
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॥७॥वीकानेरमे श्रादि जिनंदकी। मू. रतिमोहन गारी ॥ मोरा ॥ तु ॥७॥ वीरविजय कहे प्रजुजी नेटी । उरगती कुःख निवारी ॥ मोरा ॥ तु ॥ ए॥ ... इति संपूर्ण ॥
॥ वीकानेर समोवसरणका स्तवन ॥ अपने पदको तज कर चेतन ॥ ए देशी॥
देखो प्रनुका अजब महोबव। कैसा गठ जमाया है । बीकानेरमें संघ सकल मिल समोवसरण विरचायाहै ॥१॥ क्या कहुं मंझपकी शोना । कहे बिन कोउ न रहेता है । देवलोकका एक निशाना । देखन वाला कहेता है ॥ दे - ॥॥ चौमुख समोवसरणमें सोहै। जिनवर मुज मन नाया है। दरिशण बादाने देखो प्रचुकुं । कैसा ध्यान लगाया है । दे.॥३॥चामर बत्र सिंहासन