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________________ स्तवनावली. १४ए सेवीवरो शीवसुंदरी॥ चि ॥५॥ वारवार विनवं प्रज्जु तुमथी जो अवधारो माहरी आतम आनंद प्रजुजी दीजो वीर विजयने मया करी॥ चि ॥ ६ ॥इति समातं॥ ॥अथ श्री सिहाचलजीनुं स्तवन । मनरीबातांदाखाजी महाराराज ॥ए देशी॥ प्रीतमजी सुणो दीलरी बात हमारी जी माराराज ॥ श्रांकणी ॥ विमलगिरिंदकुं नेटो जी माराराज जव नंवके संचित पापकरमकुं मेटो जी माराराज ॥ प्रीत ॥१॥ पुरव नवाणुंवारा जी माराराज । प्रनु षन जिणंदा चरणे चल कर आया जी माराराज ॥जी॥२॥ राजादनी तरुबाया जी मारा राज । तुमे दिलजर देखो झषन जिणंदके पाया जी मारा राज ॥ प्रीत ॥३॥ पुंडरिक गणधर आदि जी माराराज मुनिमुक्तिसधारे । टाली सर्व उपाधी जी मारा १३
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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