SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११७ श्रीमवीरविजयोपाध्याय कृत, तुं वीरविजयने तार ॥ चा ॥ मे ॥६॥ इति श्री वासुपूज्य जिनस्तवन ॥ ॥अथ श्री वीमल जिन स्तवन. ॥ ... राग केरबो॥ , वीमल सुहंकर मुजमन वसीया ॥ मु॥ यांकणी ॥ अष्ट करम मल उर करीने। सतचित आनंद रूप फरसीया ॥ वी ॥१॥ अंतरंग करुणाकरीस्वामीदेशना अमृत मेघ वरसीया ॥ वी० ॥२॥ जड चेतनकोसंगधनादी। एक पलकमें उषार धरसीया ॥ वी० ॥३॥वपु संग सब पुर होवाधी। अनुजव आनंद रसमें हरसीया ॥वी॥४॥ प्रजुकी वाणी श्रमीय समाण।।. पानकरी परमानंद वरिया ॥ वी० ॥ ५॥ जब तुम वाणी करणे धारी। वीरविजयकुं श्रानंद दरसीया ॥वी ॥६॥ __ . ॥ इति श्रीविमल जिन स्तवन. ॥
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy