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श्रीमवीरविजयोपाध्याय कृत,
तुं वीरविजयने तार ॥ चा ॥ मे ॥६॥ इति श्री वासुपूज्य जिनस्तवन ॥ ॥अथ श्री वीमल जिन स्तवन. ॥
... राग केरबो॥ , वीमल सुहंकर मुजमन वसीया ॥ मु॥ यांकणी ॥ अष्ट करम मल उर करीने। सतचित आनंद रूप फरसीया ॥ वी ॥१॥ अंतरंग करुणाकरीस्वामीदेशना अमृत मेघ वरसीया ॥ वी० ॥२॥ जड चेतनकोसंगधनादी। एक पलकमें उषार धरसीया ॥ वी० ॥३॥वपु संग सब पुर होवाधी। अनुजव आनंद रसमें हरसीया ॥वी॥४॥ प्रजुकी वाणी श्रमीय समाण।।. पानकरी परमानंद वरिया ॥ वी० ॥ ५॥ जब तुम वाणी करणे धारी। वीरविजयकुं श्रानंद दरसीया ॥वी ॥६॥ __ . ॥ इति श्रीविमल जिन स्तवन. ॥