SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .-११६ श्रीमद्दीरविजयोपाध्याय कृत, अपने जनमकालावलहंत ॥ शी० ॥ ७ ॥ देख इसविध नाटक रचना वीरविजय मन चाह करंद ॥ शी० ॥ ८ ॥ ॥ इति श्री शीतल जिन स्तवन ॥ ॥ अथ श्रीश्रेयांसजिन स्तवन ॥ ॥ राग नेरवी ॥ श्रीश्रेयांस जिन अंतरजामी दील विसरामी मेरारे ॥ दी ॥ श्रकणी ॥ अधम उधारण दुःख नीवारण तारण तीन जग केरोरे | चंदवदन तुम दरिसण पामी जाग्यो जवको फेरोरे ॥ श्री० ॥ १ ॥ चंदचकोर मोर घनचाहत पदमणी चाहत प्यारोरे ॥ युं चाहत प्रभु मुज मन जमरो चरणकमलडुग तेरोरें ॥ श्री॥ २ ॥ काल अनंते दरिस पायो प्राणनाथ प्रभु तेरोरे ॥ कर्म कलंक सब पुरनिवारो जुं सुधरे जव मेरोरे ॥ श्री० ॥ ३ ॥ दरिस करी परसन मनमेरो में हुं सेवक तेरोरे ॥ श्रातम श्रानंद प्रभुजी दीजो वीर विजयने घने -
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy