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________________ पदो. राह ॥ सुमति ॥ ३ ॥ क्रोध मान मद मोहकी रे | नासी अग्यानकी रेह ॥ कुमति गइ सिर कुटतीरे । त्रुट्यो हम तुम नेह ॥ सुमति ॥ ४ ॥ सोहं सोहं रटि रटनारे । बांड्यो परगुण रुप | नट ज्युं सांग उतारी - नेरे । प्रगट्यो श्रतम भूप ॥ ५ ॥ अथ नेम राजुल विशे वैराग्य पद. राग सुहा विहाग रे सामरेना जारे सांमरे ॥ चली | नव जवकेरो नेह निवारी | बिनकमें ना बटकाजारे ॥ सामरे ॥ १ ॥ हुं जोगन नइ नेह सब जारीरे । अंग विभूति रमाजारे ॥ सामरे ॥ २ ॥ नवसागरमें न- श्या फिरतड़े | मुजको यार लगाजारे ॥ सामरे ॥ ३ ॥ आप चलतहो मोह नगरे । मुजको राह बता जारे ॥ सामरे ॥ ४ ॥ में दासी प्रभु तुमरे चरनकी । आतमध्यान लगाजारे ॥ सामरे ॥ ५ ॥
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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