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अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रम्। [तृतीयो वर्गः ततो नु स धन्यः(स्य) तन्महता यथा जमालिस्तथा निर्गतः, नवरं पादचारेण, यावन्नवरं यदम्बां भद्रां सार्थवाहिनीमापृच्छामि । ततो न्वहं देवानुप्रियाणामन्तिके यावत्प्रव्रजामि । यावद् यथा जमालिस्तथापृच्छति । मूञ्छितोक्ति-प्रत्युक्त्या यथा महाबलो यावद् यदा न शक्नोति, यथा स्त्यावत्यापुत्रो जितशत्रुमापृच्छति। छत्र-चामरादिभिः स्वयमेव जितशत्रुनिष्क्रमणं करोति । यथा स्त्यावत्यापुत्रस्य कृष्णो यावत्प्रवजितोऽनगारो जात ईर्यासमितो यावद् ब्रह्मचारी।
पदार्थान्वयः-तेणं कालेण-उस काल और तेणं समएणं-उस समय समणे-श्रमण भगवं-भगवान महावीरे-महावीर स्वामी समोसढे-सहस्राम्रवन उद्यान में विराजमान हुए । परिसा-नगर की परिपद् निग्गया-उनकी वन्दना करने के लिए गई जहा-जिस प्रकार कोणित-कूणित अथवा कोणिक राजा गया था तहा-उसी प्रकार जित्तमत्तू-जितशत्रु भी निग्गतो-गया तते-इसके अनन्तर णं-वाक्यालङ्कार के लिये है तस्स-वह धन्नस्स-धन्य कुमार तं-उस महता-बडे भारी के ऐश्वर्य से जहा-जिस प्रकार जमाली-जमालि कुमार गया था तहा-उसी प्रकार निग्गतो-गया नवरं-विशेषता इतनी है धन्य कुमार पायचारेण-पैदल गया, जाव-यावत् जं नवरं-इतनी और विशेषता है कि उसने कहा कि मैं अम्मयं-माता भई-भद्रा सत्थवाहि-सार्थवाहिनी को आपुच्छामि-पूछता हूं णं-पूर्ववत् तते-इसके अनन्तर अहं-मैं देवाणुप्पियाणं-आपके अंतिते-पास जाव-यावत् पव्वयामिप्रबजित हो जाऊंगा अर्थात् दीक्षा ग्रहण कर लूंगा। जाव-यावत् जहा-जैसे जमालीजमालि कुमार ने पूछा था तहा-उसी तरह आपुच्छड्-पूछता है । माता यह सुनकर मुच्छिया-मूछित हो गई वुत्तपडिवुत्तया-मूर्छा टूटने पर माता-पुत्र की इस विषय मे बात-चीत हुई जहा-जैसे महन्बले- महावल कुमार की हुई थी जाव-यावत् जाहे-जब (माता) यो संचाएति-(पुत्र को रखने में) समर्थ न हो सकी तव जहा-जैसे
थावच्चापुत्तो-स्त्यावत्या पुत्र की माता ने कृष्ण को पूछा था ठीक उसी प्रकार भद्रा - सार्थवाहिनी ने जियसत्तुं-जित शत्रु राजा को श्रापुच्छह-पूछा और दीक्षा के लिए