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________________ १२] अनुत्तरोपपातिकदशासूत्रम् । [ प्रथमो वर्गः क्योंकि यह शैली अत्यन्त रोचक है और इससे परिमित शब्दों मे ही अभीष्ट अर्थ समझाया जा सकता है । तदनुसार ही श्री जम्बू स्वामी श्री सुधर्मा स्वामी से पूछते हैं कि हे भगवन् | यदि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने जो 'नमो त्थु ण' में कहे हुए सब गुणों से परिपूर्ण हैं और मोक्ष को प्राप्त हो चुके हैं — प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है । मुझको इसकी जिज्ञासा है कृपा करके यह मुझको सुनाइए । - इस सूत्र से भी यही सिद्ध किया गया है कि विनय-पूर्वक अध्ययन किया हुआ ज्ञान ही सफल हो सकता है, अन्यथा नहीं । जो शिष्य विनय-पूर्वक गुरु से ज्ञान प्राप्त करना चाहता है, उसीको गुरु सम्यग् - ज्ञान से परिपूर्ण कर देते हैं । तथा जिसका आत्मा उक्त ज्ञान से परिपूर्ण होता है, वह सहज ही में अन्य आत्माओं के उद्धार करने मे ं समर्थ हो सकता है । अतः सिद्ध यह हुआ कि गुरु से विनय-पूर्वक ही ज्ञान प्राप्त करना चाहिए । यह सफल होता है । अब सुधर्म्मा स्वामी जम्बू स्वामी के उक्त प्रश्न का उत्तर देते हुए निम्न-लिखित में प्रथम अध्ययन का अर्थ वर्णन करते हैं: सूत्र : एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समरणं रायगिहे णगरे रिद्धित्थिमियसमिद्धे, गुणसिलए चेतिते, सेणिए राया, धारिणी देवी, सीहो सुमिणे । जालीकुमारो जहा मेहो। अट्ठओ दाओ जाव उप्पि पासा ० विहरति । सामी समोसढे सेणिओ णिग्गओ । जहा मेहो तहा जालीवि णिग्गतो । तहेव णिक्खंतो जहा मेहो । एक्कारस अंगाई अहिञ्जति । गुणरयणं तवोकम्मं, एवं जा चेव खंदगवत्तव्वया साचैव चिंतणा आपुच्छणा थेरेहिं सद्धिं विपुलं तव दुरूहति, नवरं सोलस वासाई सामन्न- परियागं पाउ
SR No.010856
Book TitleAnuttaropapatikdasha Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1936
Total Pages118
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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