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________________ अहिसा और विज्ञान 99 बहुत सारे अन्तर्राष्ट्रीय प्रयल चालू है, उनम अहिंसा का ही मान्तिकारी मिद्धात कामयाब हो सकता है, ऐसा विश्वास है । बहुत से वज्ञानिका का भी यह अभिमत है कि वनानिकीकरण में मनुष्य शाति नही पा सकता । शान्ति का साम्राज्य कायम करने के लिए अपन अतर म अहिंसा को उद्युद्ध करना होगा। निशस्त्रीकरण म राष्ट्रा कोजो शान्ति के परमाणु नजर पा रहे हैं वे वनानिक शस्त्रीकरण म नही । आज राष्ट्र के बडे-बडे नता यही कहते हुए दिखाई पड़ रहे है कि विश्वशाति युद्धा मे नही, अहिंसा और प्रेम म ही सम्भवित है। यदिनानिक लोग अहिंसा के महान् सिद्धान्त को स्वीकार कर यह कृतसकल्प हो जाएँ कि हम पत्र में इस प्रकार के अस्त्रा का निर्माण नहीं करेंगे, जिनस मनुप्य जाति का विनाश होता है। तो मैं समझता हूँ कि वहत गीघ्र ही अस्न जय विभीपिकामा का ससार से अन्त हो जाएगा, और विस फिर मे शाति की सास लेने लग जाएगा। हिंसा का प्रतिकार अहिंसा से यतमान युग मे विज्ञान दानव न भयानक हिमा के माधन प्रस्तुत किय है। उन सरका प्रतिकार अहिंसा के द्वारा ही किया जा सकता है। हिमा के द्वारा हिमा का उमूलन कर अहिमा की प्रतिष्ठा करने का विचार एका प्रकार मे मानव के मस्तिष्क का दिवालियापन है। स्याही से सने वस्म को स्याही से धोना बुद्धिमत्ता नही रहला मस्ती, ठोय उसी प्रकार हिंसा का प्रतिकार महिमा मे ही किया जा सकेगा। यदि कोई यह कह कि हम हिंसा कातिर हिमा स ही करगे तो यह केवल उनको दुराशामात्र है। प्राचीन काल महिंसा ये साधन प्राज की भाति शक्तिशानी और दूरदूर तक प्रभाव डालन वाले नहीं थे । अाज जब ऐम अगणित मापन निर्मित हो चुके हैं और हिंसा अत्यन्त शक्तिशाली बन गई है, नय उसका प्रतिकार करन के लिए महिमा का अधिक सक्षम बनान की आवश्याता है। इसलिए माज महिला के पक्ष म प्रत्यक व्यक्ति का कुलदमावाज उठानी है। कारण यह है कि हमारे यहाँ विभिन्न गुगोम पटिन म कठिन समस्यामा को सुलमान महिमा पूर्ण सहयोगी रही है । मोमे जन-समाज के सम्मुम उसके
SR No.010855
Book TitleAadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1962
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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