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लिप्सा और वासना विपद्धक नवा को पनपन वा श्रवसर ही न मिले । जीवन एक ऐसी वस्तु है कि उसे किसी भी टाचे में ढाला जा सकता है । अपरिग्रहवाद जनतंत्र की बहुत बडी शक्ति है। मरल जीवन चोर उच्च याद ही अहिंसा और अपरिग्रह वा पोपण कर सकते है ।
विज्ञान एक एमी दष्टि है जिससे मानव किसी भी वस्तु वे प्रति चमलारपूण दष्टि नही रम सकता । अर्थात तथ्या वेषण के प्रति वह बुद्धि या बल देता है । वह ऐसा मापदण्ड बन गया है कि प्रत्यन वस्तु को इमी से नापा जाता रहा है। इसमे धम का भी अ तर्भाव हो जाता है । वस्तुत श्राज की परिभाषा के अनुसार विज्ञान और धम भले ही समीपवर्ती तत्त्व जान पडता, पर इनका भिनन भी उतना ही स्पष्ट है । या ता धम भी जीवन
प्रति व्यवस्थित विश्वासा की एवं दष्टि है जिसका सम्बन्ध प्राप्तरिय जगत् म है । वह ग्रात्मन वस्तु है । विज्ञान श्रात्मा जसी वस्तु म तनिक भी विश्वास नहीं करता । वह तो केवल द्रव्या मे स केवल पोदग्नि है । अदृश्य जगत की घोर विमान की गति नही है। ऐसी स्थिति म विनान श्रीर धम एन नहीं माना जा मकता । हाँ, जहाँ तर दष्टि साम्य का प्रश्न है यह कहा जा सकता है वि वनानिव गोधन प्रक्रियामूलक दृष्टि से भी धम को देखा जा सकता है |
श्राज व वनानिव युग में निशिता का धर्म के प्रति भाषण बहुत ही निथिन हा चला है । वे इस विज्ञान ज्योति में देखना चाहते हैं । तव नान को भी इसी कोटि में ना सड़ा किया है । इम को मह नही और विमान का निवास है । विमान को जहां प्रातस्तल देवन वा प्रयत्न प्रारम्भ होता है वही अवस्था तत्त्वनान के प्रवेश का ६ और तत्त्वमान का जहाँ विषद व गंभीर विचार किया जाता है, वहाँ विमान क्षेत्र स्वतप्रणस्त हो जाता है । भाग म तन्वनान का विज्ञान पृथक रमन को प्रथा रहा है जम कोई यह विभिष्ट बाट हो ।
घम के प्रति नरमतवादी जागत मानम के आस्थावान न होन का एक यह भी है युग म धमकी, श्रात्मा को तो गौण समझा गया और गाय प्रणाामा वे इतने व पोषण व परिवद्धन पर बल दिया गया जग जीवन वाध्य हा । वहीं साम्प्रदायिता पा
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