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उन्नीस
वर्तमान विज्ञान वरदान या अभिशाप ? पिपरपी पाई भी वस्तु मनुप्य कनिए तभी वरदान रूप हो साती है, जरवह उमम मानता पानवार कर, जीवन का उन्नतशील तत्त्वोस प्रोतपात पर मकै पोर जीरन म नतिातानी अभिवृद्धि र भौतिय यन्तुमा पे प्रति एक विशिष्ट दृष्टिगाण समुत्रान कर सके। यदि उसम पवल वयतिर म्याथ पूति, गापण, मत्याचार, यामप्यता, प्रमाद ग्रादि अवगुणाका निराहोता मल ही बारा दृष्टि मसीमित समय के लिए जीरनोलत करती प्रनीत हान पर मो वह अभिशाप ही कहा जाएगी। इस प्रकारको भौतिर दानिया विमो नीष्टिये उपाय नहीं मानी नागपती। यदिनावी नापा में कहा जाए तो "मानव मदिनानुदिन महिष्णु वृत्ति का विकास व अनतिर तत्वामें प्रति पूर्ण उगाही सहा वरदान है मोर पारस्परिक विद्वेष पौर पदमा रोनारामासाहित करन वारे तथ्य प्रमिाप है।
पचना विमान के विषय में रह वान पूग पण चरिताप हाती है। जहाँ पिन नमानसीमुग-समृद्धिम मभिवृद्धि की है,रम वाम प्रोर मधिर । पारामदनीयाजना क्रियान्वितनी है वहाँ उनिए कौडिपराधीनता गोष्टि मीमी है। मार ममान मिान जिनना रक्षा है उतना ही fTTी। हनिहास न यह प्रमापिन लिया है कि विगा मानव के लिए परगन उपाय मला पौर पनि हय अधिा है।
मागाको मुरिया ने निति मिमटा दिया है, भोगासिर दूरगा गारपिया है। माम हो पारम्परित मारमण भी उसना सगरम हा गया है।नि Trयार दुधिदिनमास सष्ट शिनि हाना है frमुरमुप माना मगर नि रह पाया उमा नरम पर रहम लोगाना पनुनर हाई नर-
मादर पर माifrait है। अधिकार है