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याधुनिक विज्ञान और अहिंसा
विज्ञान के दो पहल
विज्ञान का एक पहलू मानव मात्र के कल्याण की भावना से पूरित है। वह मानव जाति के हाथों मे दुःस, पीडायो और प्रभावों को दूर करने की असीम सामर्थ्य प्रदान करता है। साथ ही इनमे यह भी ग्राशा की जा सकती है कि वह विश्व को अपनी बहुमूल्य सेवा अर्पित कर गरीबी, अज्ञान और रोगो का नाश कर पृथ्वी पर स्वर्ग का अभिनव द्वार खोलेगा। उक्त याकांक्षा की पूर्ति तभी सभव हो सकती है जबकि विज्ञान द्वारा प्रदत्त अमूल्य प्रविप्कारो का उपयोग केवल मानव कल्याण के लिए किया जाए। यदि ऐसान हो सका तो सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक अलबर्ट आइन्स्टाइन के शब्दों में "विज्ञान की विपरीत दिशा से विश्व का सार्वभौम नाश निश्चित है।" ___ विज्ञान का दूसरा पहलू वह है, जिसमे भय, हिंसा ग्रादि की विपाक्त एव दुर्दान्त भावना का सनिवेश है। वह विज्ञान दानव अपने प्रत्येक श्वास-प्रश्वास मे समूचे विश्व को निगलने के लिए लालायित है। वह एक से एक भयंकर एवं प्रलयकारी संहारक अस्त्रो की झंकारो के स्वर छोड़ रहा है। विश्व के रंगमच पर अपना नग्न ताडव करने को समुद्यत है। अतः प्रत्येक विचारक के सम्मुख यह प्रश्न समुपस्थित होता है कि विज्ञान मानव जाति की असीम उन्नति एवं कल्याण का अवाव लोत है-या विनाश का कारण? अाज देश के मूर्धन्य मनीपियो को उक्त प्रश्न पर तटस्थ नीति से सोचना है।
पाश्चात्य विचारक गेटे ने जीव को मारकर जीवन की गतिविधि परखने का दोपी विज्ञान को ही बतलाया है-He, who studies some living thing, first drives the spirit out of the body.
उस प्राणी के हृदय की घृणा विज्ञान को ही प्राप्त होती है । इसी प्रकार अन्य विचारको ने भी विज्ञान की भर्त्सना कर अपनी भावना अभिव्यक्त का है। महात्मा गांधी जी के शब्दो मे---Who can deny that much that passes for science and art today destroys the soul instead of lifting it, and instead of evoking the best in us panders to our best passion. अर्थात् "इस बात के लिए आज कौन मना कर सकता है कि विज्ञान और कला ने मनुष्य की आत्मा को उन्नतिशील और विकासशील बनाने की अपेक्षा उसको और भी नष्ट-भ्रप्ट