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छह
भारतीय संस्कृति में दर्शनो का स्वरूप
प्रतापपूर्ण प्रतिभा सम्पन्न श्राचाय हरिभद्र ने अपने 'पदान समुच्चय' में भारतवप में प्रचलित प्रधान दाना का विवेचन प्रस्तुत किया है। उसम सवप्रथम बौद्धन्दणन वा उल्लेख है ।
बौद्ध वगन
बौद्ध दान में प्रणता महात्मा बुद्ध हैं । इस दगन में मुख्य चार तत्त्व हैं, जिन्ह व ग्राम सत्य के नाम से सम्बोधित करत हैं ( 1 ) दुस, ( 2 ) समु दय, (3) भाग और (1) निराय । प्रथम प्राय सत्य दुम है। बोद्ध-दशन मा प्रमुख उद्देश्य इस दुख मे मुक्त होना है । ससारावस्था के पांच स्वाध है और न ही दुरा ये प्रमुख कारण है । व पाच स्वध इस प्रकार हैंविमान, वेदना, गा, गम्पार और रूप । जब ये पांचों स्वाध समाप्त हो जाते हैं, दुम्नत समाप्त हो जाता है। दूसरा श्राप सत्य है ममुदय । तालय है पात्मा म रागद्वेष की भावना उत्पन होना। इस विराट विश्व में यह मरा है यह तग है। यह जो राग द्वेपमय भाषा को ग्रभिय्यजना* यागमुदय है । ननीय पाय रात्य है माग | भाग का स्वरूप बतलाते हुए कहा है कि मगार म जितन भी पट, पट आदि पदाय हैं, व सभी क्षणित है । जा प्रथम ग म ध व द्वितीय क्षण म नहीं है, किन्तु मिथ्या वासना ये कारण यह यही है मा पाभाग होने लगता है। इसके विपरीत समस्त पाय
1 सरग
करन
बिना भवा मश्या रूपमव च ।
2 141 MF, numai szefa 1
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