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अहिंसा को शक्ति बढानी है
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होती है । जब यह शिक्षा जीवन मे तमय हो जाती है तो मनुष्य 7 वैवल मनुष्य का, अपितु प्राणी-मात्र को प्रामभाव में ग्रहण करता है। उसमे सव. भूतात्मभूना या उदार दृष्टिकोण विकसित हो जाता है । वह दूसरों के सुखदुम्ब को अपना ही सुसन्दुस मारता है।
इस प्रकार शिक्षित एव सस्त मनुष्य वितान के प्रयाग या उपयोग के मवसर पर जीवन वे इसी सही दृष्टिकोण से देखेगा और नाप-तौल कर हेयोपादेय या विवेक रखेगा, तब उसके लिए विमान महारक्ये बदले उद्धारक वन जाएगा।
धम शिक्षा से दृष्टि विशाल बन जाने पर मनुष्य प्रत्यर प्रवृत्ति उच्च पोटि के विवेक ये प्रकाश मे करेगा। वह खाने पीने के समय सोचेगा कि मेरा खान-पान दूसरो को भूखा मारने वाना तो नहीं है मेरा वभव विसी कोदरिद्र बनाने या यारण तो नही है ? वहयावश्यर वस्तुमोबाही मर्यादित उपयोग बरेगा, अनथ दह नहीं य रैगा, निरयन वस्तुमा के संग्रह से दूर ।
इरावे प्रतिरिक्त, जिन वस्तुमा के उपयोग से जीवन म अनतियता, मालस्य, अपमण्यता और विषमता पी वद्धि होती है, उच-नीच की भ्राति कोप्रथय मिलता है, उहें वह न म्परा ही करेगा और 7 उनका उपयोग परिवार को हो परने देगा। इस प्रकार ए परिवार ये सस्वारी हा जाने पर घोरे पीरे उसरा प्रभाव समाज में फ्लेगा।
विमान ी भांति भांति के यत्रो का निर्माण पर मनुष्य को सुसगोल वनात हा वकारी वो भी उत्तेजन दिया है । धम शिला प्राप्त विवेकशील मनुप्य पत्र के प्रयोग में पूरी मर्यादा पार चलगा। जब वह देरोगा कि विसी यत्र के प्रयोग ग बारी पड़ रही है, हमारा की रोजी धोनी जा रही है मोर ग प्रकार हिंगा को प्रोलान मिल रहा है, तो वह उमरा प्रयाग ही क्यों करेगा? साय हो जिन यत्रों में मानव में पालम्य और मरमप्यना पासमार होना हो, गुबुमारता मौरसतानो बढ़तीहा, उारे द्वारा उत्पादित वस्तुपो पा उपयाग या उपभाग परन म धामा दृष्टि-महिंगम दृष्टि समन पवित भयप हिमनगा। वह यतिष्ठा सोही घाटेगातया प्रपन गरीब गाईपापी माजीविषामो धोने या प्रयत नहीं परगा। समाज में