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अहिमा की दाक्ति बढ़ानी है
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क्येि रहना हा वह अपने सुन के लिए दुसरो से मुखा का हनन नहीं करता वह स्वेच्छया ही सीमित साधनो में व्यापक जीवन यापन का अभ्यस्त है। प्रत यह स्पप्ट ह कि यदि मसार की वयक्तिक सुख-शातिनासमष्टि या म्प देना ह ताजगत और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रहिमा की सवांगीण प्रतिष्ठा अत्यन्त प्रनिगाय है । जगत में महाख किन अमान् हिमा का क्षणिक प्रावल्य भले ही अपना प्रभाव बताता हो पर उसस ससार वे गताप मे ही अभिवृदि हागी। प्राणविक शक्तियों भले ही पातक जमा मम, पर यह नो प्रतिहिमा को ही बल देन वाला सिद्ध होगा। इसका प्रत्युत्तर प्राध्यात्मिक या पहिमाशक्ति ही दे सरती ह । पाचाय परम्परा वी सहाग्य नीति का ममयन परले वाले भी पाज सुरलाथ महिमावा यशोगान ही नहीं करते प्रपितु हिमपारितया विरुद्ध बडे-बडे प्रा दोलन और प्रदान भी उन द्वारा सिजाते । प्रत सामारिन सुख स्मृदि की अभिवद्धि थे तिए भी अहिंसा
वाप्रमाण मावश्यक हा पहिंसा-शक्ति को बढ़ाना इसलिए भी प्रावया है पियल इममे वालिस माम्य ही स्थापित होगा अपितु इमयो परम्परा
अपनी निमराता में पारण सह्याग्दियो तप मानवता यो अनुमाणित मरती रहेगी।
महिमा को पारित वाने के लिए दो माग हो गाने हैं पर तो हिंसा पभराधाप गभी प्रसार ये पुरपायों को प्रोसाहित परना और दूसग पहिंसा में नित नये विमानमम्मन प्रयोग परते ररना । यदि सभी राष्ट्र गानि स्पारनाथ मात्रामर व पाना यादी नीति का प्रति हिमा का परिस्पाग पर गामूहिक रूप में महिला से विभिन प्रयागा द्वारा शान्ति स्थाप नाय प्रयत्न गीर हा तो निरादह हिंसात्मक स्थिति अलग होगी तया दूगरी पोर महिमा को भी विधाया बस प्राप्त हो जायेगा। महिमा भारती अभिपति परती है जो frमी भी राष्ट्र की स्थायी व मौसि पित है। हिंगा पाह रितनी गति गाती हो पर यह पागयिरही है, जिगरा प्रयोग निर्माण के लिए गमय हो रही है। निपप राजनपिपागा मन्तव्य है निशामन जैग गठोर माग म यति पहिगारमा पनि पामोहित रिया गया पर
ज माय नसता पूरा प्रसारण दिया गया तो गज सोर दृष्टिगे निराकग्निरा जायेगा। पिना दमयस्यारे पाग