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तेंतीस
अहिंसा को शक्ति बढानी है मुख्यत प्राज दो धाराघों के बीच सघप चल रहा है । एव पश्चिम से सम्बद्ध है जिसका मुख्य प्राधार भौतिकवादी परम्परा होने के कारण सानपान मोर मामोद प्रमोद में जीवन समाप्त करना है। इस विचार परम्परा मी नहीं था सिंचन यमानिए प्रमापनी द्वारा तीत्र गति से हो रहा है। दूमरी विचारधारा भारत से सम्बद्ध है जो प्रत्येर प्रवृत्ति में मयम और त्याग म विश्वास करती हुई सासारिक वामनावधक साधनों पर मधुग मगार जीवन का वास्तपिर माद वैराग्यमानक त्याग में मानती है। या यमाय पानद का उपभोग यही व्यक्ति परसपता है जिसके जीवन ममपम परिम्याप्त हो और वह प्राय ययतामो या दास 7 हो । जीवन या पानद पावश्यरतानों पी स्मृद्धि और अभिवद्धि में ही है। प्रत्युत प्रया या मर्यादिन मारना रसते हुए जीवन यापन परना हो ऐसा औराद निरी परम्परामानय या उरग्वल भरिप्य रिमाण पर सक्ती है । प्रगति प्रदत्त य विगान द्वारा प्रापिएन पस्तु बाहुल्य का यह तात्रय नहीं मिार इनवा दाग वन पर रह । भारत के तत्वचिन्तराने स्पष्ट मपिादिन रियाशिसवा गुम प्राम-चोति में है भोर माम-माति पोरगरि मुगों परित्याग पर निभर है । वे यह भी मायपर मानते हैं रिपधिर मुगाम्पिये मापानमे परिग्रह पृत्ति पानियायत पोपाहोना, नाम प्रसार मी हिंगा है। मपप, विषमता, मौन, पर्ने हिना, गोरापोर मामाग्यमारय मारवृत्ति मे एगे परिणाम है जिन पर मामय नहीं पर । भविष्य की प्रेरना नहीं पित माती।
मन मषिष्य लिए मा पापन प्राय पाहा मा, मिहिमा मानि मानव-गमा विमसि पातर है पोरा भी ग शर निर मरिगिहारोगनिमाला मसाय पर