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________________ विज्ञान की सघि हिमा के साथ 130 ने कहा--"ये वितने मम हैं, मदियां बीत गई, फिर भी इनपी हैवानियत ज्या वी त्या बनी हुई है। अपनी मूल वृत्तियां इस प्रगतिशील वज्ञानिय युग मे भी इहोन नहीं छाडी, इनका विकास मानव विकास की तुलना म नगण्य है।" __या वार्तालाप के बाद जब व बाहर निकन ता जेर कटी हुई पाई, तब उनको भारी पाश्चय हुमाकि हम तो हिंगर पशुमा कोही अविकसित प्राणी समझ रह थे पर मनुष्य ने भी अभी तम अपनी तस्वरमूलक हिसावृति का पूर्णतया परित्याग नहीं किया है । वस्तुत भौतिक विकास में मनुष्य को नैतिक प्रगति बहुत मद पड गई है। इसका कारण ही हिंसा मूलक विनान था विकास है भले ही मानव को पााविक वृत्तिपर मानवता की पतली चादर पड़ी हुई दृष्टिगोचर हाती हो, पर वह क्षणिर पावसम ही पट जाती है। पयुमो के पत्ल परन में वैमानिए यत्रो पर्याप्त विकास दिया है। यह पहाजाना पिसवार ये तीक्ष्ण पत्र होने चाहिए जिनमे प्राणहानि के समय पशुगण अधिव पप्ट यामनुभय न करें। उनकातडपाका व परणाई स्वर पनि निपालने । अवकाश हो न मिले। इराम दार नहीं कि महात्मा गापी की राजनीति में पनपने याना भान या भारत पूपिया अधिर मासाहार की पार भुषाहमा है। महिंसा मोर मानवता पर विस्तृत ममा पण गरावाले भी उग पाहार से बहुत ही पम प्रलिप्त रह पाते हैं। तारपय बौदिर जगन में तो पहिला सांगीण स्पण यिवसित हुई है, पर दुभाग्य जीयन क्षेत्र म पर प्रयानही पर पाई।
SR No.010855
Book TitleAadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1962
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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