________________
उनतीस
अहिंसक प्रयोग के हेतु धर्म और विज्ञान में
सामंजस्थ हो
यह सर्व स्वीकृत तथ्य है कि मनुप्य स्वभावतः प्रगतिशील प्राणी है । इसीलिए विज्ञान द्वारा प्राकृतिक शक्तियो की क्षमता की खोज कर सका। पर, परिताप इस बात का है कि वह भौतिक शक्तियों पर विजय प्राप्ति में इतना लीन हो गया है कि आत्मिक शक्तियों को भी विस्मृत कर बैठा। यहाँ तक कि वह अपने-आपको इतना अधिक शक्ति सम्पन्न समझने लगा कि परमात्मा, महात्मा, ईश्वर आदि अजात शक्तियों को भी नगण्य मानने लगा। श्रद्धा का अश जीवन से विलुप्त हो गया। वह एक प्रकार से हक्सले के इस सिद्धान्त का अनुगामी वना कि ईश्वर आदि अज्ञात तथ्य मानवीय चिन्तन की अपूर्णता के द्योतक है । वह मानता है कि मनुष्य को समुचित या पौष्टिक खाद्य उचित मात्रा मे न मिलने के कारण उन लोगो मे विटामिन की कमी थी। मानसिक गक्ति दुर्बल हो गई थी। तभी वे ज्ञात वस्तुओं को छोड़ अज्ञात के चिन्तन मे लीन हो गये। फलस्वरूप दौर्बल्य के कारण वे परमात्मा या अजात शक्ति के लिए प्रलाप करने लगे। नहीं कहा जासकता कि हक्सले के इस तर्क मे कितना तथ्य है, पर यह तो वुद्धिगम्य है कि इस चिंतन कीपृष्ठभूमि विशुद्ध भौतिक है। अहिंसा या अध्यात्म प्रधान दृष्टिकोण से चिन्तन किया जाय तो उपर्युक्त विचारो मे सशोधन को पर्याप्त अवकाग मिल सकता है। भारत तो सदा से श्रद्धा और ज्ञान मे विश्वास करता आया है। इन दोनो के अभाव में जीवन तिमिराच्छन्न हो जाता है। विज्ञान के द्वारा वढी हुई स्वार्थपरायण वृत्ति की खाई को अहिंसा द्वारा ही पाटा जा सकता है । तात्पर्य है कि धर्म और विज्ञान में सामंजस्य स्थापित हो । यद्यपि विशुद्ध तत्त्वज्ञान की दृष्टि से विचार किया जाय तो धर्म का, विज्ञान से