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विश्व शाति के अहिंसात्मक उपाय
125 1055ोसयुक्त रामघ के वक्तव्य और दिसम्बर, 1950 को रूस,भारत और अफगानिस्तान के राजनीतिज्ञो द्वारा दिय गय वक्तव्या में पचगील का उल्लेस जत्यन्त महत्त्वपूण ढग से किया गया है । इस प्रकार विश्व के तीस राष्ट्रो ने, जिनकी जनसस्या अनुमानत एक अरब पाँच करोड से अधिक है, पचशील को मान्यता प्रदान की है। तभी से अतराष्ट्रीय भितिज म पचशील काप्रभाव स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है। अहिंसा के राजनीतिक स्वरूप का अन्तभाव पचगील म हो जाता है। प्राइजनहावरन कहा है--"पचशील की नीति से पूर्व विश्व म उतनी सद्भावना नहीं फ्लो थी जितनी ग्राज फली है।"
पशील के सम्बध म राजनीतिना म विभिन्न मत प्रसारित है। एक पक्ष इस अव्यावहारिक बताता है, जिसकी पृष्ठभूमि है कि विनान दिनानुदिन जव प्रगति के पथ पर अग्रसर हो रहा है तो काई भी राष्ट्र तटस्थ कसे रह सकता है। यदि वह इसका दावा करता है तो वह अय राष्ट्रा के प्रति विश्वासघातकर अवसरवादी बनने का प्रयास करता है। ए० नेहरू पर भी यह आरोप लगाया जाता है कि वे साम्यवादी गुटा के साथ गठप धन कर अपनी स्थिति सुदृट परन के लिए प्रयलशील है। दूसरी ओर साम्यवादी पालोचक अपना सदह इस प्रकार व्यक्त करते हैं कि प० नेहरू पचगील की पृष्ठभूमि पर साम्राज्यवादिया के पिछलग्गू बन रहे हैं। किन्तु विरोधियों की यह प्रावणयुक्त वाणी यह भूल जाती है कि पचशील प० नहरू की कोई वयक्तिक नीति नही है । यह तो एशिया को पारम्परिक धम नीति का राजनीतिक सस्करण है, जो अद्यतन जलवायु स प्रस्फुटित किया गया है । सहयस्तित्व की सद्भावनापूण नीति के वीज पचशील म है। यह पूणत अव्यावहारित तय्य है। भारत के प्राचीन गणतत्रो के इतिहास स इमकी राजनीतिक व्यवहायता 2500 वप पूव ही साप्ट हो चुकी है। मौय सम्राट अशोक ने इसीसे मल सात सिद्धान्त का समयन शान्ति स्थापनाथ किया था। विश्व शान्ति के दस सून
जमा कि कहा जा चुका है अहिमा की पृष्ठभूमि पर ही पचगील का उद्धव हमा है । महारमा गाधी न अहिंसा द्वारा ही राष्ट्र को उत्पीडित होन