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छब्बीस
विश्व शांति के अहिंसात्मक उपाय
सयुक्त राष्ट्र संघ
मानव मदव शांति का पिपानु रहा है। जो भी ममस्याएं खड़ी होती हैं, उह दूर कर सामाजिक नगटन को बनाए रखन के लिए एव राष्ट्र की सास्कृतिक ज्याति प्रज्जलित रखन के लिए शाति एक मत्यन्त आवश्यक तत्त्व है । जन मानव लघुतम समूह बांधकर जीवन यापन करते हुए एक-दूसरे पर आक्रमण करता था तब भी वह शाति को ही वाद्यनीय समभता था । बडेबड़े युद्ध का भी शांति के लिए ही होना वहा जाता है। वस्तुत गाति प्रात्मिव तत्त्व है जिसका परिपाक समाज और राष्ट्र को प्रभावित करता है। हिसा पति की जननी है। वह सघप से दूर रहने की प्रेरणा देती है। लेकिन परि - स्थिति और वृत्तिया का दास बनकर महिसा के स्थान पर मानव न हिंसा जो साधन बनाया घोर प्रशाति व वीज शेष ।
रसम कोई उदह नहीं मानव पामविक वृत्तिया न प्रभावित हार हो नर महारा युद्ध लीलामा वा ताण्डव रचता है । उसीने स्वरूप मपूण बुद्ध के उपरणा का सूत्रपान हुआ। पर यह तथ्य है कि युद्ध मूरत मानव वृत्ति नहीं है। महावराण म भने हो युद्ध के बादल तिरोहित न हुए हा विन्तु सास्कृतिक प्रगति का दसन हुए मानना पड़ा कि विश्व शानि श्री मानवच्या माज भी सुरक्षित है। एतिहासिक मनुभवान सिखाया हेरि यह अन्तराष्ट्रीय समूह टन का भवन करना रहा है। वियाना की नाम श्रीर बूराव ना कासट एम ही सगठना में प्रारम्भित्र स्वरूप प्रथम महायुद्ध न मानय ने मपना स्वाथ परारण वृति द्वारा विश्व रामन परजा पाणविकनृत्य रिया उग्रम मानता सजि हुई। इसीलिए विपन शाति म बनारसन के लिए पूरापीय राष्ट्रानगर सामूहिक प्रयास कर 1910 न