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________________ प्राचार्यश्री तुलसी को वे आराम करते और न. प्राने साघुपों को करने देते हैं / ध्यान, चिन्तन मध्ययन उपास्याने, पचनही हो रहा है। किरन साघुषों की चर्या ऐमी होती है जिम वायवासी दीपक रहा है। सभी धार्मिक क्रियाएं चलती रहती हैं। इतने परिपारिनी सन्तुलन न खोना कोई प्रासान बात नहीं है। कोई उनके साथ दो-चार रोज रहकर देखें तभी पता चल सकेगा कि दे कितने परिश्रमी हैं और यह विना साधना के सम्भव नहीं है। उन्होंने अपने साधुपों तथा साध्वियों को पठन-पाठन, मध्ययन तथा लेखन में निपुण बनाने में काफी परिश्रम और प्रयत्न किये। उनके साधु केवल प्रपने सम्प्रदाय या धर्म ग्रन्थो या तत्त्वो से हो परिचित नहीं, पर सभी धर्मों मोर वादो से परिचित हैं। उन्होंने कई अच्छे व्याख्याता, लेखक, कवि, कलाकार तथा विद्वानो का निर्माण किया है। केवल साधुनों को ही नहीं, श्रावक तथा श्राविकानों को भी प्रेरणा देकर मागे बढ़ाया है। भाचार्य का कार्य राजस्यान पोर राजस्थान में भी चली जैसा प्रदेश, ऐसा समझा जाता है। जहां पुराने रीति-रिवाज और रूडियो का ही प्राबल्य है। उस राजस्थान म पर्दा तथा सामाजिक रीति-रिवाजो को बदलने की प्रेरणा देना सामान्य बात नहीं है, पर अत्यन्त कठिन कार्य है। उन्होने पदो प्रथा तथा सामाजिक कुरीतियो के प्रति समाज को सजग कर नया मोड दिया है। जैसे प्रगतिशील युवकों को लगता है कि वही पुरानी दवाई नई बोतल में भरकर दे रहे है. उसा तरह परम्परावादियो को लगता है कि साधनों का यह क्षेत्र नहीं, यह ता था। का-गृहस्थियों का काम है। उनका क्षेत्र तो धार्मिक है। वे इस झझट में क्यों पड़ते हैं। पर प्रगतिशील तथा परम्परावादियो के सिवा एक वग एवं लोगों का भी है जो प्राचीन संस्कृति में विश्वास या निष्ठा रखते हुए भी पा बात जहां से भी प्राप्त हो, लेना या ग्रहण करना श्रेयस्कर मानता है। उद ऐमा लगता है कि तुलमीजी भाचार्य हैं और प्राचार्य का कार्य है, धर्म का / समयोपयोगी व्याख्या करने का, सो वे कर रहे हैं। उन्होंने केवल नियों के लिए ही किया है, सो बात नहीं है। वे राष्ट्राप हो नही, मपितु मानव-समाज पो दष्टि से ही कार्य कर रहे हैं।
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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