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k anant मार्ग है ग मान-गमा लिर, feart wite और पाEि पारा भी इसमें ही निहित है-- मारापामार पति
भारको श्रम ऐना हो पानाको नमोन निषि हैं। इनमें से एक मागासी रन गाय । मार की महिमा समार में तिनी हो दोपहीहोर भाग्य Talaबंध पर मानना ही प्रखण्ड Mum, पाम धमकीजो गरिमा है, रमको सुनना उमसे नहीं की जा की मातोपरोधीनी मोरथम भाग्य निर्माता महसनका
पिससे परतो घरपायाममा होती है और मनुज महिमा को प्राप्त । समार में जो कुछ मुख समृशिष्टिगोचर है. इसके पीछे यदि कोई fe है तोवह मम ही है। नितान्त वन्य जीवन से उन्नति और विरास
शिखर पर मानव पाजसड़ा है. वह श्रम की महिमा का स्वयं-भापी
जिस घम में इतनी शक्ति हो और जो मूर्य की तरह उस शक्ति का सागर हो, उससे अधिक 'चरैवेति' को साकार प्रतिमा पन्य कौन हो सकता है? पाचायंधी तुलसी ने अपने अब तक के जीवन से यह सिद्ध कर दिया है कियम ही जीवन का सार है पौर श्रम में ही मानव को मुक्ति निहित है।
माचार्ययो तुलसी ने अपने बाल्यकाल से रो प्रयक यम किया है, उसके दो रूप हैं-- ज्ञान प्राप्ति मौर जनकल्याण । बालक तुलसी बब दस वर्ष के भी नहीं थे, तभी से शानार्जन की दुर्दमनीय अभिलाषा उनमें विद्यमान थी। अपने बाल्यकाल के संस्मरणो मे एक स्थल पर उन्होंने लिखा है-'मम्ययन में मेरी सदा से बड़ी चि रही, किसी भी पाठको कण्ठस्थ कर लेने की मेरी मादत पी: धर्म-सम्बन्धी अनेक पाठ मैंने बचपन में ही कण्टाय कर लिये थे।' अध्ययन के प्रति उनकी तीन लालसा मौर श्रम का ही परिणाम था कि ग्यारह वर्ष की अल्प वय मदापय मे दीक्षित होने के बाद दो वर्ष की अवधि में ही इसने