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________________ तो पयों? ६१ अभी कुछ समय पहले जर वे पूर्व भारत के दौरे से दिल्ली लौटे थे, तब दिल्ली में सभी वर्गों को मोर से एक अभिनन्दन समारोह हुमाया। तब मैं सोच रहा था कि अपने मापको मास्तिक समझते हुए भी धर्म निरपेक्ष देश में मुझे अपने ही समाज के एक साधू के अभिनन्दन में मच पर सम्मिलित होना चाहिए या अधिक से अधिक मैं श्रोतामों में बैठने का अधिकारी है। किन्तु तभी मेरे मन को समाधान प्राप्त हमा कि साधु किसी समाज विशेप के नहीं होते। विशेष कर प्राचार्य लसी बाह्यरूप से भले ही तेरापथ के साधु लगते हों, पर उनके उपदेश और उनकी प्रेरणा से चलाये जा रहे प्रान्दोलन मे सम्प्रदाय की गन्ध नहीं है । इमलिए मैं अभिनन्दन के समय वक्तामों में शामिल हो गया। प्राचार्ययो भारतीय साधुनों की भांति यात्रा पैदल ही करते हैं। इसलिए छोटे-छोटे गांवों तक वे जाते हैं। उन गांवों में नयी चेतना शुरू हो जाती है। यदि इस स्थिति का लाभ बाद मे कार्यकर्ता लोग उटाएं तो बहुत बड़ा नाम हो सकता है।
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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