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तेजोमय पारदर्शी व्यक्तित्व राप्रलदेसर के लिए रवाना हुपा।
यह विसी दर्शनीय स्थान का यात्रा-वर्णन नहीं है और न ही यह साधारण पाठक के मन-बहलाव के लिए लिखा जा रहा है। इसलिए दीक्षा समारोह के अवसर पर मैने जो कुछ देखा-सना, उसका प्रलकारिक वर्णन नहीं करूंगा और न ही उस समारोह का विस्तत विवरण प्रस्तुत करूंगा। मैंने दीक्षा की प्रतिज्ञा लेने के एक दिन पहले दीक्षार्थियों को भड़कीली वेश-भूषा में देखा। उनके चेहरों पर प्रसन्नता खेल रही थी। उनमें से अधिकाश युवा थे और उनमे स्त्री और पुरुष दोनों ही थे । मुझे यह विशेष रूप से जानने को मिला कि उन्होंने अपनी वास्तविक इच्छा से साधु पोर साध्वी बनने का निश्चय किया है । वे ऐसे साब-समाज में प्रविष्ट होगे, जिसमे सासारिक पदार्यों का पूर्णतया त्याग और मात्म-सयम करना पहता है । मुझे यह भी जात हुअा कि न केवन दीक्षार्थी के सकला को दोघं समय तक परीक्षा ली जाती है, बल्कि उसके माता-पिता व संरक्षकों की लिखित प्रनमति भी आवश्यक समझी जाती है। इसके बाद मैंने व्यक्तिगत रूप से इस बात की जांच की है और इसकी पुष्टि हुई है। जहां तक इस साधु-समाज का सम्बन्ध है, मुझे उनकी सत्यता पर पूरा विश्वास हो गया है।
मेरे सामने सीधा ज्वलन्त प्रश्न यह था कि वह कौनसी शक्ति है, जो इस कठोर और गम्भीर दीक्षा-समारोह में पूज्य प्राचार्य श्री के कल्याणकारी नेत्रों के सम्मुख उपस्थित होने वाले दोक्षार्थियों को इस संसार और उसके विविध पाकर्षणों, सुखों और इच्छामों का त्याग करने के लिए प्रेरित करती है ? अपनी पृष्ठ-भूमि
इस विषय में अधिक लिखने से पूर्व में इस संसार और मनुष्य-जीवन के बारे में अपना दृष्टि-बिन्दु भी उपस्थित करना चाहूँगा। मेरे पूर्वजों की पृष्ठभूमि उन विद्वान् ब्राह्मणों की है जो अपनी प्रसि खुलो रख कर जीवन बिताते घे भोर उनके मन में निरन्तर यह जिज्ञासा रहती पी-तत् किम् ? मेरी तात्कालिक पृष्ठभूमि ब्रह्म समाज की पी। यह हिन्दुओं का एक सम्प्रदाय है जो उपनिषदो की जानमार्गी च्यास्या पर प्राधारित है। मुझे विज्ञान को शिक्षा मिली है और मैंने लमन मे स्त्रिी और हिप्लोमा प्राप्त किया है। बाद में मेरे