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वैराग्यनी अने निशनी सद्याय
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सी जोने खूणे आणा३॥ त्यारे जगमां तुजविना, बीजो नवी दीशे ॥ जिन्न नाव मटशे तदा, सेहेजें सुजगीशें | आ॥१४॥ माझं तानवि करे, सहुथी रहे न्यारो॥ श्णे एहिनाणे उलख्यो, प्रजु तेइने प्यारो॥ था ॥ १५ ॥ सिझदिशायें सिझने, मलिये एकांति॥ उदयरत्न कहे श्रा तमा, तो नांगे ब्रांति ॥ श्राप ॥१६॥ इति चैतन्य शिक्षाजास संपूर्ण ॥ ।
॥अथ वैराग्य सद्याय ।। राग आशावरी ।। . .. ॥किसीकुं सव दिन सरखे न होय ॥प्रहउगत अस्तंगत दिनकर, दि नमें अवस्था दोय।किणा|| हरिवखिजा पांव नल राजा, रहे षटखम रिडि खोय ॥ चंगालके घर पाणी आएयु, राजा हरिचंद जोय ॥ किणा॥ गर्व म कर तुं मूढ गमारा, चडत पडत सव कोय | समय सुंदर कहे । तर परत सुख, साचो जिनधर्म सोय ॥ किणा।। इति वैराग्य सद्याय ॥
॥अथ निखानी सद्याय॥ वेटी मोह नरिंदकी, निखा नामे विख्यात बे॥ धर्म द्वेषिणी पापणी, न गमे धर्मनी वात वे ॥ निंद न लहे जे सजाना, सजानांवे पुःखनंजनाबे
टेकानिंगा॥ घेरे सघला जीवने, जिहांजमनो पास वेजा घडि निंद न पायें, ता घडि प्रजुको वास वे ॥ निगार ॥ आलस उमराव एहनो, जालिम जोछ जुवान वे॥पूत वगासू जाणजो, चाले आगेवान बे॥निंग ॥३॥ जाति पांच ले जेहनी, पसरी विश्व प्रमाण बे। केवली विना एक जेहनी, कोई न लोपे आण वे ॥ नि॥४॥ कम न आवे ढकडी, धर्मे ।' पाडे नंगाण वे ॥वाजा वाजे जिहां उघनां, तिहां होय सुखनी हाण वे ॥निंग ॥५॥ उदयरत्न कहे उघने, जीत्यानो एह उपाय वे || पहेलां.. थाहार जो जीतियें, तो निसावश थाय बे॥निंग ॥ ६॥ इति ॥
॥अनव्यने उपदेश न. सागवा विषे सद्याय॥ || उपदेश न लागे अनव्यने, बहुविधशुं ब्रूजवे कोय रे ॥ गंगाजल न वरावीयें, पहा वायस हंस न होय रे ॥ ॥१॥ जेम जेम प्रतिबो धियें, तिम तिम बमणो थाय रे ।। हांजी कुटिल अश्वतणी पेरें, अवलो यवलो उजाय रे ॥ ॥२॥पयंने शाकर पातां थकां, विषधरने वधे विषपूर रे । हांजी हाण करे हित दाखतां, ते माटें वशीय पूररे ॥ जण ॥३॥ अजाण पुःखें समजावीयें, सुजाण घणुं सुलाल रे ॥ हांजी दाधा
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