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सचित प्रचितविचारनी सद्याय.
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सीनु मान ॥ मात्र प्रमुख निविगय पकवान, चलितरसें तस कालनु मान ॥७॥ धान धोयण ब घडी परमाण, दोय घडी जलवाणी जाण.॥ फल धोयण एक प्रहर प्रमाण, त्रिफलाजल बे घडीने मान ॥॥त्रण वार उकाले जेह, शुद्ध उसंजल कहियें तेह ॥ प्रहर तीन चउ पंच प्रमाण, वर्षा शीत उनाले जाण ॥ ए॥ श्रावण जावडे दिन पंच, मिश्र लोट अ णचालित संच ॥ आशो कार्तिक चिहु दिन जाण, मागशीर पोष दिन तीन प्रमाण ॥ १० ॥ माह फागणे कह्या पण जाम, चैत्र वैशाख चिहुं पो र अलिराम ॥ जे आपाढ प्रहर त्रण जोश, तद उपरांत सचित्त ते हो। ॥ १९ ॥ अलसी कोडवा कांग ने ज्वार; साते वरसे अचित्त विचार ।। वि दल सर्व तिल तूयरी वाल, पांचे वरसें अचित्त रसाल ॥१॥ गहुं शा लि खडधान कपास, जव त्रिहुं वरसे अचित्त ते खास ॥सीत ताप वर्षा दिक जोश, सचित्त योनी अचित्त ते होश ॥ १३॥ हरडे पीपर मरिच व दाम, खारेक डाख एला अनिराम ॥ शत जोयण जलवटमां वहे, शाप जोयण अलवटमां कहे ॥ १४ ॥ धूम अग्नि परियट्टण करी, अचित्तयोनि तस थाये खरी ॥ सचित्त वस्तु प्रवहणनी जेह, थाये अचित्त प्रवचन क हे तेह ॥ १५ ॥ गेरु मणशिल तृण हरियाल, आवे जलवट माहे रसाल ॥त अचित्त होये प्रवचन साख, पण लेवानी नहिं तस जाख ॥१६॥ धोलो सिंधव कह्यो अचित्त, श्राझविधे अदर परतीत ॥ श्लादिक उला जे थाय, तेह अचित्त थापना नवि श्राय ॥ १७ ॥ खोरं घृत जे कालातीत, पलटाए वरणादिक रीत ॥ काचूं झूध विदल संयोग, थाये अन्नय कहे मुनि लोग ॥ १७ ।। वार प्रहर रहे जूगली राव, शोल प्रहर रातुं अजाब ॥ दहिं राई विदलें देवाय, उप्स करे तो शुद्धज थाय ॥१ए। कडाविगय परि शेक्यु धान, मुहूर्त चोवीश गोमूत्रनुमान ।। ढुंदणियादिक विदलनी दाल, शेक्यां धान परें तस काल ॥२०॥ चार प्रहर शीरो लापशी, विद' ल परें ते प्रवचन वशी ॥ जिहां जेहनो काल पूरो पाय, तिहां ते वस्तु अन्नदय कहेवाय ॥१॥अथाणा प्रमुख सहु जाण, चलित रसें तस कालतुं मान ॥ वीलवणादिक केरो काल, शास्त्रमाहे डे तेह विशाल ॥ ॥२॥ तेह नणी हां नाण्यो एह, अल्पबुझिने पडे संदेह ॥ आर्धधान अंकूरा निकले, ते सहु वस्तु अनदयमा जले ॥३॥ ए बोल्यो लव लैश
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