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गौतमटहानी सचाय.
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गट फूले माया करे, कहो केम ते नवसागर तरे ॥ जेहने देव गुरुशुं द्वेष, रूप न पामे ते लव लेश ॥६॥ बहु दाहाडा- मेसी करी, माखण तावे थनियें धरी ॥ ते मरीने नरके जाय, मानव होय तो दाघज्वर थाय || ॥७॥ध तणे वली लोनें जेह, पामा नूखे मारे तेह ॥ फरता ढोरमां तेजाये वली, नूखे तरशे मरे टलवली ॥७॥श्रांख्य फूटी दीये जे गाल, परजर श्रांधो थाये वाल ॥ मरो फीटो दीये जे गाल, परनव सुख न पा मे याल । ए॥ पाट पाटलाने वस्त्र दान, सविसेक्युं वली रांध्यु धान ॥ मु निवरने दे मन उदास, तस घर लक्ष्मी रहे थिरवास ॥१०॥ देतां दान विमासण करे, देश दान मन चिंता धरे ।। सुखसंपत्ति पामे अनिराम, डे हडे न होये वसवा गम ॥ ११ ॥ धन्य धाउँने दिये दान, महिशल ते हने वाधे वान ॥ शपिने देश करे रंगरोल, तस घर लखमी करे करोल ॥१२ ।। सुखसंपत्ति जो आवी मली, मोसाने देवा मति टली ॥ धन उ पर राखे जे नेह, परजव सापपणे थाय तेह ॥ १३॥ अधिको उठो वांधे सोल, दे वाचा नवि पाले वोल । तेहनी लोकमां न होय लाज, परजव तेदनां न सरे काज ॥ १४ ॥ पोथी वाले वोले जेह, परनव मूरख थाये तेह् ॥ नणे गुणे दे पोथीदान, परनव नर ते विद्यावान ॥ १५॥ नाना महोटा कुवला हरि, खांते चूटे लीला करी ॥ कीधां कर्म नवि ठेलाय, मरीने नर ते कोदीयो थाय ॥ १६॥ पांख पंखीनी काढे जेह, परनव लूंगे थाये तेह ॥ पग कापे ने करे गल गलो, मरी नर ते थाये पांगलो ॥ १७॥ पाडोशीशु वढे दिन रात, परनवे तेसो न पामे संघात || मात पिता सुत वश्यर धणी, परनव तेहने वढावढ घणी ॥ १७॥ अण दी। श्रण सांजल्यु कहे जेह, परजव पहेरो थाये तेह ।। पारकी निंदा करे नर नार, यश नवि पामे तेह लगार ॥ १५॥ परना अवगुण ढांके जेह, नर नारी यश पामे तेह ।। निंदा करे ने दीये जे गाल, परजव नर ते पामे आ ल॥२०॥ रात्रिनोजन करे नर नार, ते पामे घुअड अवतार ॥राते पंखी न खाये धान, माणस हैये न दीसे शान ॥१॥ सूर्य सरखो आथ मे देव, मानवने खावानी टेव।। धर्मी लोकज होये जेह, रात्रिनोजन टाले तेह ॥शा गौतम पृष्ठाने अनुसार, ए सद्याय करी श्रीकार ॥ पंमित हर्ष सागर शिष्य सार, शिवसागर कहे धर्मविचार ।।३।। इति सद्याय संपूर्ण।
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