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सद्यायमाला.
कोड. तो गोकुल पूजे, एक कोड हल सागी ॥ ज० ॥ ३ ॥ सहस बत्रीश देशः वडजागी, जये सरबके त्यागी ॥ बनुं कोड गामके अधिपति, तोड़े न हुआ 'सरागी ॥ ज०|| || नव निधि रतन चोगडा बाजे, मन चिंता सब जांगी ॥ कनक कीर्त्ति मुनिवर वंदत है, देजो मुक्ति में मार्गी ॥ ज|| || इति ॥ ॥ अथ बाहुबलजीनी सचाय. ॥..
॥ बनी बोले हो, बाहुबल सांजलो जी ॥ रूडा रूडा रंग निधान ॥ गयवर चढिया हो, केवल केम हुवे जी ॥ जाएयुं जाएयुं पुरुष प्रधान ॥ ब० ॥ १ ॥ तुज सम उपशम जगमां कुण गणे जी, कल निरंजन देव ॥ जाइ जरतेसर वाहाला वीनवे जी, तुम करे सुरनर सेव ॥ बण् ॥ २ ॥ जरवरसालो हो वनमां वेठी जी, जिहां घणां पाणीनां पूर ॥ ऊरमर वरसे हो मेहुलो घणुं जी, प्रगट्या पुण्य अंकूर ॥ बण् ॥ ३ ॥ चहु दिसी वट्यो हो वेलडीए घणुं जी, जेम वादल बायो सूर ॥ श्री आदिनायें हो अमने मोकल्यां जी, तुम प्रतिबोधन नूर ॥ ० ॥ ४ ॥ वर संवेगरसें हो मुनिवर जरया जी, पाम्युं पाम्युं केवल नाण ॥ माणकमुनि जस नामें दो हरख्यो घणुं जी, दिन दिन चढतो बे वान ॥ व ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ अथ ढंढा ऋषिजीनी सचाय ॥
॥ ढंढण रुषिने वंदणा ||: हुं वारी लाल || उत्कृष्टो अणगार रे ॥ हुं वारी लाल || अजिग्रह लीधो आकरो ॥ हूं वारी ॥ लब्धें लेशुं या हार रे || हुं वारी लाल ॥ ढं ॥ १ ॥ दिन प्रति जावे गोचरी ॥ हुँ ॥ न मले शुद्ध आहार रे ॥ हुं० ॥ न लीए मूल असूकतो ॥ हुं० ॥ पींजर हूवो गात रे || हुं० ॥ ढं० ॥ २ ॥ हरि पूढे श्री नेमने ॥ हुं० ॥ मुनिवर सहस अढार रे || हुं० ॥ उत्कृष्टो कोण एहमें. ॥ हुं० ॥ मुजने कहो, वि, चार रे । हुं । ढ़ं० ॥ ३ ॥ ढंढ अधिको दाखी ॥ हुं ॥ ॥ श्री मुख | नेम जिणंद रे || हुं० ॥ कृष्ण उमाह्मो वांदवा ॥ हुं० ॥ धन्य जादवकु |ल चंद रे ॥ हुं । ढं० ॥ ४ ॥ गलीश्रामां मुनिवर मल्या ॥ हुं० ॥ वांदे कष्ण नरेश रे || हुं ॥ किाही मिथ्या त्वियें देखीने ॥ हुए ॥ आव्यो जा व विशेष रे || हुं० ॥ ० ॥ ५ ॥ आवो म घर साधुजी ॥ हुं० ॥ ल्यो मोदक बेशुद्ध रे || हुं ॥ षिजी लेइ यवीया ॥ ० ॥ प्रभुजी पास विशुद्ध रे ।। हुं० ॥ ० ॥ ६- ॥ मुजलब्धें मोदक मिस्या ॥ हुं० ॥ पूढे बे