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बारजावनानी सद्याय.
. ॥ दोहा ॥
॥ जवसायर बहु दुख जलें, जामण मरण तरंग ॥ ममता तंतु तिऐं ग्रह्यो, चेतन चतुर मतंग ॥ १ ॥ चाहे जो बोकण जणी, तो जज जग वंत महंत ॥ दूर करे पर बंधने, जिम जसथी जलकं ॥ २ ॥
॥ ढाल पांचमी ॥
(४५)
॥राग केदारो गोमी ॥ कपूर हुवे अति उजलो रे।। ए देशी ॥ पांचमी जावन जावीयें रे, जिउ अन्यत्व विचार ॥ आपसवार श्री ए सहु रे, मलि तुज परिवार ॥ १ ॥ संवेगी सुंदर, बूज मा मूंक गमार ॥ तहारुं को नहीं इस संसार, तुं केनो नहि निरधार ॥ सं० ॥ २ ॥ पंथ सिरे पंथी मख्या रे, कीजें किणशुं प्रेम ॥ राति वसे प्रद उठ चले रे, नेह निवादे केम ॥ सं० ॥ ३ ॥ जिम मेलो तीरथ मले रे, जन वजनी चाह । के त्रोटो के फाय दो रे, लेइ लेइ निजघर जाय ॥ सं० ॥ ४ ॥ जिहां कारज जेहनां सरे रे, तिहां लगें दाखे नेह ॥ सूरीकंतानी परे रे, बटकी देखा मे बेह ॥ सं०॥२॥ चुलणी अंगज मारवा रे, कूरुं करी जतुगेह ॥ जरत बाहुबलि फूजी या रे, जो जो निजना नेह ॥ सं० ॥ ६ ॥ श्रेणिक पुत्रं बांधी रे, लीधुं वेहेंची राज्य || दुःख दीधुं बहु तातने रे, देखो सुतनां काज ॥ सं० ॥ ७ ॥ जावन शिवपद लहे रे, श्री मरुदेवी माय ॥ वीर शिष्य केवल लघुं रे, श्री गौतम गणराय ॥ सं० ॥ ८ ॥ इति पंचम भावना ॥ ॥ दोहा ॥
॥ मोह वसु मन मंत्रवी, इंद्रिय मल्या कलाल ॥ प्रमाद मदिरा पाइ के, वांध्यो जीव भूपाल ॥ १ ॥ कर्म जंजीर जमी करी, सुकृत माल स विली || शुभ विरस डुरगंधमय, तनगो तहरें दीध ॥ २ ॥ ॥ ढाल बही ॥
॥ राग सिंधु सामेरी ॥ बडी भावना मन धरो, जीउ अशुचि नरी ए काया रे, शी माया रे, मांगे काचा पिंशुं ए ॥ १ ॥ नगर खाल परे नितु वहे, कफ मल मूत्र जंगारो रे, तिम द्वारो रे, नर नव द्वादश नारिनां ए ॥२॥ देखी डुरगंध दूरथी, तुं मुह मचकोने माणे रे, नवि जाणे रे, तिए, पुद्गल निज तनु न ए ॥ ३ ॥ मांस रुधिर मेदारसें, अस्थि मजानर बीजे रे, शुं. रीजे रे, रूप देखी देखी आपणुं ए ॥ ४ ॥ कृमिवाला दिक को