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(४३)
सद्यायमाला.
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नणी, नणशुं नावना बार ॥१॥ प्रथम अनित्य अशरण पणुं, एह सं सार विचार । एकलपणुं अन्यत्व तिम, अशुचिथाश्रव संसार ॥२॥.संव र निर्जर नावना, लोक सरूप सुबोधि ॥ सुलह नावन जिन धरम, ए गीपरें कर जीउ सोधि॥३॥ रसकूपी रस वेधि, लोहथकी होये हेम॥ जीउ श्ण नांवन शुरू हुये, परम रूप लहे तेम ॥४॥ नावविना दाना दिको, जाणे अबूएंधान ॥नाव रसांग मल्या थकी, त्रुटे करम निदाना।
॥ ढाल पहेली ॥ ॥नावनानी देशी ॥ पहेली नावना एणी परें नावीयेंजी ॥अनित्य पणुं संसार ॥ मान अणी ऊपर जल बिंडु जी, इंज धनुष अनुहार ।। ॥९॥ सहेज संवेगी सुंदर आतमा जी, धर जिन धर्मसु रंग ॥ चंचल चपलांनी परें चिंतवे जी, कृत्रिम सविहु संग ।। साशाजाल सुहणे गुल अशुजशुं जी, कूमो तोष ने रोष॥तिम चम चूल्यो अथिर पदारथे जी, श्यो कीजें मन शोष ॥ सण ॥३॥ गर त्रेह पामरना नेहज्यु जी, ए यौवन रंग रोल ॥ धन संपद पण दीले कारमीजी, जेहवा जलकबोल ॥ स॥॥ सुंज सरिखे मागी जीखमी जी, राम रह्या वनवास.॥ श्ण संसारे ए सुख संपदा जी, संध्या राग विलास ॥ स ॥५॥ सुं दर ए तनु शोजा कारमी जी, विणसंतां नहीं वार ॥ देवतणे वचनें प्रति बूजीयो जी, चक्री सनत कुमार ॥ स॥ ६ ॥ सूरज राहु ग्रहणे सम जी जी, श्री कीर्तिधर रायं ॥ करकं प्रतिबन्यो देखीने जी, वृषन जराकुल काय ॥ स ॥७॥ किहां लगें धूया धूवल हरा रहे जी, जल परपोटा जोय ॥ आउखू अथिर तिम मनुष्यनुं जी, गर्व मकरसो कोय॥ जे क्षणमा खेरु होय ॥ स ॥ ॥ अतुलि बल सुरवर जिनवर जिस्या जी, चकि हरिबल जोनी ॥ न रह्यो एणे जगें को थिर थर जी, सुरनर पति कोमी ॥ स॥ए॥ .
॥दोहा ।। ॥ पल पल बीजे आउखु, अंजलि जल ज्यु एह ॥ चलते साथे संब लो, लेइ सके तो लेह ॥१॥ ले अचिंत्य गलशुं ग्रही, समय सींचाणो आवि ॥ शरण नहीं जिनवयण विण, तेणे हवे अशरणं नावि ॥२॥
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