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सद्यायमाला.
नणी, नणशुं नावना बार ॥१॥ प्रथम अनित्य अशरण पणुं, एह सं सार विचार ॥ एकलपणुं अन्यत्व तिम, अशुचि श्राश्रव संचार ॥शा.संव र निर्जर नावना, लोक सरूप सुबोधि ॥ उवह जावन जिन धरम, ए णीपरें कर जीन सोधि ॥३॥ रसकूपी रस वेधित, लोहथकी होये हेम॥ जीज इण नावन शुरू हुये, परम रूप लहे तेम ॥ ४॥ नाव विना दाना दिका, जाणे अचूएं धान ॥नाव रसांग मढ्या थकी, त्रुटे करम निदान॥५
॥ ढाल पहेली ॥ ॥नावनानी देशी ॥ पहेली जावना एणी परें नावीयेंजी॥अनित्य पणुं संसार ॥ मान अणी ऊपर जल बिंघर्ड जी, इंज धनुष अनुहार ।। ॥१॥ सहेज संवेगी सुंदर आतमा जी, धर जिन धर्मसु रंग । चंचल चपलांनी परें चिंतवे जी, कृत्रिम सविहु संग ॥साशाजाल सुहणे शुल अशुनझुंजी, कूमो तोष ने रोष। तिम जमल्यो अथिर' पदारथें जी, श्यो कीजें मन शोष ॥ स ॥३॥ गर त्रेह पामरना नेहज्यु जी, ए यौवन रंग रोल ॥ धन संपद पण दीसे कारमी जी, जेहवा जलकबोल ॥ स॥४॥ सुंज सरिखे मागी भीखमी जी, राम रह्या वनवास ॥ श्ण संसारे ए सुख संपदा जी, संध्या राग विलास ॥ स ॥५॥ सुं दर ए तनु शोना कारमी जी, विणसंतां नहीं वार ॥ देवतणे वचनें प्रति बूजीयो जी, चक्री सनत कुमार ॥ स॥ ६ ॥ सूरज राहु, ग्रहणे सम जी जी, श्री कीर्तिधर राय ॥ करकं प्रतिबन्यो देखीने जी, वृषन जराकुल काय ॥ स॥७॥ किहां लगें धू धूवल हरा रहे जी, जल परपोटा जोय ॥ आउखू अथिर तिम मनुष्यनुं जी, गर्व म करसो कोय॥ जे क्षणमा खेरु होय ॥ स ॥॥ अतुलि बल सुरवर जिनवर जिस्या जी, चकि हरिबल जोमी ॥ न रह्यो एणे जगें कोई थिर थर जी, सुरनर नूपति कोमी ॥ स॥ ए॥
॥ दोहा ।। ॥ पल पलं बीजे आउखं, अंजलि जल ज्यु एह ॥ चलते साथे संब लो, वेश् सके तो लेह ॥१॥ ले अचिंत्य गलशुं ग्रही, समय सींचाणो आवि ॥ शरण नहीं जिनवयण विण, तेणे हवे अशरण नावि ॥२॥
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