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संघायमाला.
॥ ८ ॥ पंच मास पंच दिन सही, ऊपर कही जी ॥ वरस नवाएं आप | श्री० ॥ एए ॥ करि सण आराधना, शुभवासना जी ॥ पहोता स्वर्ग म कार ॥ श्री० ॥ १० ॥ चुलसी चोवीशी लगें, जस ऊगमगो जी ॥ रहेशे जेनुं नाम ॥ श्री० ॥ ११ ॥ वसु युग वसु चंद्र वत्सरे (२०२८) पारुली पुरे जी ॥ जसु पद थापना कीध ॥ श्री० ॥ १२ ॥ वाचक अमृत धर्मनो, शु णे शुभमनो जी ॥ शिष्य क्षमाकल्याण || श्री० ॥ १३ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री देवचंदजी कृत अष्ट प्रवचनमातानी सचाय प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥
॥ सुकृत कल्पतरुश्रेणिनी, वर उत्तर कुरु नोमि ॥ श्रध्यातम रस श शिकला, श्री जिनवाणी नौमि ॥ १ ॥ दीपचंद पाठक सुगुरु, पय वंदी वदात ॥ सार श्रमणगुणनावना, माशुं प्रवचनमात ॥ २ ॥ जननी पुत्र जिम शुभकरी, तिम ए पवयणमाय ॥ चारित्र गुणगणवर्द्धिनी, निर्मल शिवसुख दाय || ३ || जाव योगी करण रुचि, मुनिवर गुप्ति धरंत ॥ यदि गुप्ति जो न रहि शके, तो समितिविचरंत ॥४॥ गुप्ति एक संवरमयी, रंगिक परि णाम | संवर निर्जरसमितिथी, अपवादे गुणधाम ||२|| द्रव्ये द्रव्यत चर ता, जावे जावचरित || जावदृष्टि द्रव्यत क्रिया, करतां शिव संपत्त॥६॥ तमगुण प्राग्नावथी, जे साधक परिणाम | समिति गुप्ति ते जिन कहे, साध्य सिद्धि शिवठाम || || निश्चय करण रूचि थइ, समिति गुप्तिधर साधि ॥ परम अहिंसकजावथी, राधे निरुपाधि ॥८॥ परम महोदय साधवा, जेह थया उजमाल ॥श्रमण निक्षु मादा यति, गाउं तस गुणमाल ॥ ए ॥ ॥ अथ प्रथम ईर्यासमिति सद्याय प्रारंभः ॥
॥ प्रथम गोवालात जवें जी ॥ ए देशी ॥ प्रथम हिंसक व्रतत जी, उत्तम जावना एह ॥ संवर कारण उपदिशी जी, समतारसगुण गेह ॥ मुनीश्वर, ईर्यासमिति संभार ॥ श्रव कर तनुयोगथी जी, दुष्टचपल ता वार ॥ मु०||ई| कणी ॥१॥ काय गुप्ति उत्सर्गनो जी, प्रथम समिति अपवाद ॥ ईर्या ते जे चालवुं जी, घरि यागमविधि वाद || मुणाई॥२॥ ज्ञा न ध्यान सद्यायमें जी, स्थिर बेठा मुनिराज ॥ शाने चपलपणुं करे जी, अ
जब रस सुखराज ||०||ई|| ३ || मुनि उठे वसदी थकी जी, पामी कार 'चार ॥ जिनवंदन ग्रामांतरे जी, के आहार निहार ॥ मु० ॥ ई० ॥ ४ ॥