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अगियार अंगनी सद्याय.
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नुसार रे ॥ न॥ ॥ कीर्तिविजय नवमायनो रे, सेवक करे सद्याय ॥ इणिपरे नगवती सूत्रनी रे, विनयविजय नवद्याय रे॥ना॥इति। ॥श्रीमद्यशोविजयजीकृत अगियार अंगनी सद्याय॥
॥ तत्र प्रथम आचारंगसूत्रनी सद्याय लिख्यते ॥ ॥ कोश्लो परवत धूंधलो रेलो॥ ए देशी ॥ आचारांग पहेलुं कर्तुं रेलो, अंग प्यार मकार रे ॥ चतुरनर ।। अढार हजार पदें जिहां रेलो, दाख्यो मुनि आचार रे ॥चणा॥ नावधरीने सांजलो रेलो, जिम नाजे नवनीति रोचणा पूजा नक्तिप्रन्नावना रेलो, साचविये सविरीति रे ॥चणानावण ॥ ए आंकणी ॥ दो सुअखंध सुहामणां रेलो, अऊयणां परावीस रे॥ च॥ शाश्वताअर्थे इहां कहे रेलो, युक्ति श्रीजगदीश रे ॥ चणानाणाशशमीउडे वयणें गुरु कह्यं रेलो, मीठडं अंगज एह रे ।। च ॥ मीठडीरीते सांजले रेलो, सुख लहै मीठडां तेह रे ।। च ॥ ना॥३॥ सुरतरु सुरमणि सुरगवी रेलो, सुरघट पूरे काम रे ॥ च ॥ सांजलq सिहांतनुं रेलो, ते इश्री अति अन्निराम रे ।। च ।।ना ॥॥ श्रीनय विजयविबुतणो रेलो, वाचकजस कहे शीश रे ॥ चणा तुमने पहिला अंगनो रे लो, शरण | होयो निशदीश रे ॥ च ॥ ना ॥ ५॥ इति ॥१॥
॥अथ बीजा अंग सूयगडांगसूत्रनी सचाय ॥ ॥ कपूर होवे अति कजलो रे ॥ए देशी॥ सूयगडांग हवे सन्निलोजी,बी जो मनने रंग ॥ श्रोताने आवे जे रुचिजी, पागंतर। सातम नावे मन रुचे जी, तेहज लागे अंग॥॥चतुरनर धारो समकितनाव, ए ले नवसायरमा नाव ॥ चणा ए आंकणी। सूअखंधा दोय इहां नलांजी, अजयणां तेवीस ॥ तिसय तिसहि कुमतितणुंजी, मतखंमन सुजगीस ॥च॥२॥ कहिन दविय अणुजोगमांजी, एह पहूत अधिकार ॥ साधु जवहरीनो जलोजी, जवदरनो व्यापार ।। च ॥३॥ अर्चक वर्चकना इहांजी, श्रोताना अंतर होय ॥ गुरुनक्ता सुख पामशेजी, अवरत्नमे मति खोय ॥ च॥मा अंग ज पूजा प्रनावतांजी, पुस्तक लेखन दान ।। गुरुनपकार संन्नारवोजी,श्रा दर नक्ति निदान ॥ च ॥ ५॥ वक्ता एहवो कोई नहीजी, जिम जाख्यो तुमे धर्म ॥ वाचकयश कहे हर्षशुंजी, इम ते विनयनो मर्म ॥ च ॥६॥