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(३५)
सद्यायमाला
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कीजिये, आलस थंगथी.मी रे।। पर्व ॥ ॥ गजगति चाले चालती, सोहागण नारी ते आवे रे ।। कुंकुम चंदन गहूंथली, मोतियें चोक पूरावे रे॥पर्व ॥७॥ रूपा मोहरे प्रनावना, करिये ते सुखकारी रे॥ श्री || माविजय कवि रायनो, बुध माणकविजय जयकारी रे ॥ पर्व ॥ ए॥
॥अथ प्रथम व्याख्यान द्वितीय सद्याय प्रारंजः ॥ ॥ ढाल बीजी.॥ ए बींनी किहां राखी ॥ ए देशी ॥ पहेले दिन बहु. आदर आणी, कल्पसूत्र घर शाहो ॥ कुसुम वस्त्र केसरशुं पूजी, रातिज गे लिये लाहो रे ॥प्राणी ॥ १॥ कल्पसूत्र आराधो, आराधी शिवसुख साधो रे जविजन ॥ कल्पसूत्र आराधो ॥ ए.आंकणी॥प्रह उठीने उपा श्रये आवी, पूजी गुरु नव अंगें ॥ वाजिन वाजतां मंगल गावतां, गहूंली | दिये मन रंगे रे ॥प्रा का ॥शा मन वच काय ए त्रिकरण शुझे, श्री || जिनशासनमाहे ॥ सुविहित साधुतणे मुख सुणिये, उत्तम सूत्र उमाही रे॥प्रा० ॥ कण ॥३॥ गिरिमांहे जिम मेरु वडो गिरि, मंत्रमाहे नवकार ॥ वृदमाहे कल्पवृक्ष अनुपम, शास्त्रमांहे कल्प सार रे॥प्राण॥ कण्॥४ ॥ नवमा पूर्वनुं दशा श्रुत, अध्ययन आठमुंजेह ॥ चौद पूर्वधर श्रीजा बाहू, उहायुं श्री कल्प एह रे ॥प्रा०॥ कण ॥५॥ पहेला मुनि दश क स्प वखाणो, क्षेत्रगुण कह्या तेर ।। तृतीय रसायन सरिखं ए सूत्र, पूरव मां नहिं फेर रे॥प्राण॥ क॥६॥ नवशे त्राणुं वरसें वीरथी, सदा कस्प वखाण ॥ ध्रुवसेन राजा पुत्रनी आरती, आनंद पुर मंमाण रे ॥ प्रा॥ क०॥७॥अहम तप महिमा.उपर, नागकेतु दृष्टंत ॥ एतो पीठिका हवे सूत्रवांचना, वीरचरित्र सुणो संत रे ॥ प्राण ॥ क० ॥७॥ जंबूडीपमा द क्षिण जरतें, माहणकुंम सुगम ॥ श्राषाढशुदि उ चविया, सुरलोकथी 'अलिराम रे॥प्रा०॥क० ॥ ए.॥ षन्नदत्त घरे देवानंदा, कुखें अवत रिया खामि ॥ चौद सुपन देखी मन हरखी, पियु आगल कही ताम रे ॥प्रा० ॥ क० ॥ १०॥ सुपन अर्थ कह्यो सुत होशे, एहवे बालोचे ॥ ब्राह्मण घर अवतरिया देखी, बेगे सुरलोक शोचे रे ॥ प्रा०॥ क० ॥१९॥ इंजे स्तव ऊलट आणी, पूरण प्रथम-वखाण। मेघकुमार कथाथी सांज, कहे बुध माणक जाणि रे । प्रा० ॥ का ॥ ११॥ .
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