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नगवंतीसूत्रनी संद्याय. (२३) ॥ ढाल पाठमी ॥ तुज सायें नहीं बोलु महारा वाला ते
मुजने चीसारी जी ।। ए देशी ॥ ॥ दृष्टि उमी सारसमधेि, नाम परा तस जाणुंजी ॥ आपस्वनावें | प्रवृत्ति पूरण, शशिसम बोध चखापुंजी ॥ निरतिचारपद एहमां योगी, क
हियें नहि अतिचारीजी ॥आरोहे आरूंढे गिरिने, तेम एहनी गति न्यारी । जी ॥१॥ चंदनगंध समान खिमा इहां, वासकने न गवेषेजी ॥ प्रासंगें
वर्जित वली एहमां, किरिया निजगुण लेखेजी ॥ शिक्षाथी जेम रतननि योजन, दृष्टिनिन तेम एहोजी ॥ तास नियोग करण अपूरव, लहे मुनि केवल गेहोजी ॥२॥ वीणदोष सर्वक महामुनि, सर्ववन्धिफलनोगी जी। परनुपगार करी शिवसुख ते, पामे योग अयोगीजो. ॥ सर्व शत्रुक्षय सर्व व्याधिलय, पूरण सर्व समीहाजी ॥ सर्व अरश्रयोगें सुख तेहश्री, अ. नंत गुण निरीहाजी ॥३॥ ए अडदिठी कही संक्षेपे, योगशास्त्र संकेते जी॥ कुल योगीने प्रवृत्तचक्र जे तेहतणे हितहतेजी ॥ योगी कुलें जाया तस धम्, अनुगत ते कुलयोंगेजी ॥ अक्षेपो गुरुदेवहिज प्रिय, दयावंत उ पयोगेजी ॥४॥ शुश्रूषादिक अडगुण संपूरण, प्रवृतचक्र ते कहियेंजी ।। यमध्य सान्नी पराग अर्थी, आद्य अवंचक लहियजो ॥चार आर्हतादि क यम श्चा, प्रवृत्ति यिर सिदिनाजी ।। शुरुचे पाले अतिबारद, टा ले फल परिणामेंजी ॥५॥ कलयोमीने प्रवृत्तचक्रने, श्रवणशुद्धिपक्षपातें जी ॥ योगदृष्टि अंग्रे हित होवे, तेणे कयु ए बातेंजी ॥ शुइ नावने सूनी किरिया, बेहुमां अंतर केतोजी ॥ जलदलतो सूरजने खजुन, तास तेजमा तेतोजी॥६॥ गुह्यान्नाव ए तेहने कहिये, जेहसुं अंतर नांजेजी । जेहसुं चित्त पटतर होवे, तहसुं गुह्य न गजेजी ॥ योग्य अयोग्य विनाग असहतो, करले मोटी वालोजी । खमसे ते पंमित परषदमां, मुष्टि प्रहारने लातोजो।। ७ ॥ सन्नात्रण श्रोतागुण अवगुण, नंदिसूत्र दीशेजी ॥ ते जाति एभयोग्यने, देजो सुगुण जगीशेजी लोकप्रयो निज निजला, योग नाव गुणरयोजी॥श्रीनयविजय विबुधपयसेवक,वाचकयाने वयरोजी॥
श्री विनयविजयजीकृत जगवतीसूत्रनी सञ्चाय ॥ . .. ___॥ कपूर होये अति कजलो रे ।। ए देशी ॥ बंदि प्रणामी प्रेममुं रे, पूरे गौतम वाम ॥ वीरजिनेसर हितकरी रे, अरथ कहे अनिराम रे । नवि