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viग्यवारकनी सद्याय.
( ३३५)
जो० ॥ १ ॥ खोचन खाली सहे जेमांहि, कीर्त्ति थाये - काली ॥ जांग्य तमा कूनो पीनारो, गुण मेहले सहु गाली ॥ जो ॥ २ ॥ मात पिता गुरुने नवि माने, साते व्यसनें शूरा ॥ वारे तेहना बैरी थाये, पापी ते वली पूरा ॥ जो० ॥ ३ ॥ वनवासी संन्यासी वावे, जंदा तकीये जाजी ॥ जे व्यसनी ते जात विटाले, लोकनी मांदे खाजी ॥ जो० ॥ ४ ॥ साकर डा खनां सरवत पीयो, पीयो दूधना प्याला || देह तपे ने रूडां दीसो, कोइ न कहे मतवाला ॥ ० ॥ ५ ॥ जांग तमाकू मदिरा पाइ, माऊमना वली मोजी || धर्मतणी ते वात न धारे, खोटी वातना खोजी ॥ जो० ॥ ६ ॥ नीली बूटी पीछे घूंटी, खूले बेसी खांते ॥ भूलवतां पण थाये जाहेर, बाहेर सतां खांते ॥ जो० ॥ 9 ॥ नांग पाइने जिलडी रूपें, नगन श्रइ नचायो || पारवतीयें प्रेम धरीने, शंभुने समजाव्यो । जो० ॥
|| जग्य नीली पण नरने पूणे, सवजीवें सूकाइ ॥ व्यसन ती वाडी सिंचावी, सकुरु वांहे न साही || जो० ॥ ए ॥ वणिक वाडवनी जात विटाले, नांग्य तमाकू वाला || नीच उंच वेरो नवि जाणे, कुल लजवे कुमताला || जो० ॥ १० ॥ जांगडलीयें जे नोलवीया, जलवीया ते बंधा ॥ फूल बिया धर्मै नवि फूले, रोलविया जड मूधा ॥ जो० ॥ ११ ॥ एक हो |ये तिहां साते घ्यावे, एक एकना अनुबंधी ॥ बांध्या जिम जलमां बंधायें, समजावी संबंधी ॥ जो ॥ १२ ॥ श्रमल तणी जे अवला तेमां, नव अटवी मां शूला ॥ व्यसन विलुद्धा न रहे सुधा, तत्त्व न पामे मूला || जो० ॥ १३ ॥ मदिरा ती जांग्य ते जगिनी, जुड़े जनक गति गांजो ॥ पूर्ण व्यसननां गए परखी, मुनि वचनें ते मांजो ॥ जो० ॥ १४ ॥ कुलयोलू नर कदीयें केता, क्रोइकुलें अवतंसा ॥ बोलू ते वीजाने वोले, पुण्ये होय प्रशंसा ॥ ० ॥ १५ ॥ पुढवी तेज वाज वनस्पति, त्रस पाने बहु त्रासा || व्यसनी नरनुं कांय विषासे, वलि लहे दुर्गति वासा ॥ जो० ॥ १६ ॥ जिनवयऐं नयणे जोईने, व्यसन ते दूर निवारो ॥ व्रत आराधो सं यम साधी, निज श्रातमने तारो ॥ जो० ॥ १७ ॥ सत्तरशें पंचाय वरपे, शुदि बीज ए बोली | फाल्गुनमासे जांग्य फजेती, जेदवी गणिका गोली ॥ नो० ॥ १८ ॥ उदयरतन वाचक उपदेशे, समज्या जेह सुजाण ॥ अपलक्षणथी अलगा रहेशे, लेहशे परम कल्याण ॥ जो ॥ १७ ॥ इति ॥