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________________ हितशिक्षानो सद्याय. - - - lone A - - - - - - - - -* --- - श्वाने खाधो प्रथम नरके गयो, महतो नरके पुःख ॥ नंक नियमतणा प्रजावथी, सौधर्मे सुरसुख ॥ ॥१॥ मिथ्यात्वीनुं पण निशिजोनन 'थकी, विषमिश्रित थयुं अन्न ॥ अंग सडी मरी मांजार थीयो,'प्रथम नर के उत्पन्न ॥ ॥॥ श्रावक जीव चवीने अनुक्रमे, थयो निर्धनहि जपुत्र | श्रीपुंजनामे तसं लघु वंधवो, मिथ्यात्वी थयो तत्र ।। ना३॥ श्रीधरनामें वेहु महोटा थया, चाले कुल आचार ॥ जजक सुर तव जौवे ज्ञानगुं, प्रतिबोध्या तिणिवार ॥ ॥३४॥ जातिसमरण पाम्या वेहु जण, नियम धरे दृढचित्तं । रयणीनोजन न करे सर्वथा, कुटुंब 'धरे अनी तन॥२५॥ ढाल | श्रेणिक मन अचरिज थयु ॥ए देशी ॥जोजन नांपे तेहने, पिता माता करे रीषो त्रण्य उपवास थया तिस्यें, जोयो नि यम जगीशो रे ॥ २६ ॥ एक मतां व्रत आदरो॥ ए आंकणी॥ जिम हो ये सुर रखवाला रे ।। उषमन उष्ट रेटले, होये मंगलमाला रे ।। ए॥ २२॥ नकसुर सानिधि करे, करवा प्रगट प्रत्नावे रे ।। अकस्मात् नृप पेटमां, शूलव्यथा उपजावेरे । एरणा विफल 'थया सवि ज्योतिषी, मंत्री प्रमुखनें चिंतारे। हाहारव पुरमा थियो, मंत्रवादी नाग दमता रे ॥ एण॥श्या सुरवाणी तेहवे समे, थश् गगनें घनगाजी रे॥ निशिनोजन तनो धणी, श्रीपुंज हिज दिनलोजी रे ॥ ए॥३०॥ तस कर फरस थकी होवे, नूपति नीरुज अंगे रे ।। पडह वजावी नयरमां, तेडाव्यो धरी रंगे रे ।। ऐ॥३१॥ नूपति निरोगी थयो, पंच सय गाम तस दीधा रे।। ते महिमाथी बहु जणे, निशिनोजन व्रत लीधारे॥ ए॥३॥ श्रीपुंज श्रीधर अनुक्रमें, सौधर्मे थया देवा रे।।राजादिक प्रतिक्रिया, धर्म करे सयमेवा रे ।। ए ॥३३॥ नरेनव ते त्रण पामिया, पाली संयम सूधा रे॥ शिवसुंदरीने ते वस्या, थया जगत प्रसिका रे ।। ए ॥ ३४॥ एम जाणी नवि प्राणीया, निशिजोजन व्रत कीजें रे ॥ श्रीज्ञानविमलगुरु ना मथी, सुजंस सोनाग सहीजें रे ॥ एक। ३५ ॥ इति ॥ । - ॥अथ श्रीज्ञान विमलजीकृत हितशिक्षानी सद्यायप्रारंजः॥ ॥ एम धन्नो धरणीने परिचावे ॥ए देशी॥था आप सदा समकावे, ॥ मनमांदुःख मत पावे रे॥को किसीके काम न आवे, आप कियां फल पावें रे॥१॥ आपें आप सदा॥ जिम पंखी तरुये मली थावे, रयणी - - - - D ३४
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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