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सद्यायमाला.
॥ २ ॥ ढाल बड़ी ॥ कुंबखडानी देशी ॥ बडी कहे मुज उलखी रे, बटको मा पंधी दूर ॥ सनेहा सांजखो ॥ बकाय रक्षा कीजीयें रे, होवे ज्युं सुख, सनूर: ॥ स० ॥ १ ॥ चार कषाय राग द्वेषने रे, नाखजो दूर विकारि ॥ सं० ॥ ए व्यने उलखी रे, पालो निरतिचार || स० ॥ २ ॥ समकित शुद्ध जगा वियें रे, नांगिये दुःखनी बेडि ॥ स० ॥ मग्न रहो जिनधर्म में रे, नाखो कुगति उखेडि ॥ स० ॥ ३ ॥ बह आराधो जावशुं रे, जवियण थर उजमाल ॥ सं० ॥ जक्ति मुक्ति· सदा लदो रे, होवे युं मंगलमाल ॥ स० ॥ ४ ॥ लब्धि कहे साज़न तुमें रे, मं करो प्रमाद लगार ॥ स० ॥ दिन दिन संपदा अजिनवी रे, होवे श्री श्रीकार ॥ स० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ अथ सप्तमीनी. सद्याय प्रारंभः ॥..
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॥ ढाल सातमी ॥ लूहारणे जायो दीकरा, सोनारी हैं ॥ ए देशी ॥ सा तम कहे सातामा ॥ सुखकारी हे ॥ प्राणी रात्री यें सोय ॥ सदा सुख का दे ॥ सुख गर्व न कीजीयें ॥ सु० ॥ दुःख आवे दीन न होय ॥ स० ॥ १ ॥ सात जय निवारियें ॥ सु॥ कियें मिथ्या शंस ||स०|| सात अमीरस कुंरुमां ॥ सु० ॥ जीलीयें घइनें हंस || स० ॥ २ ॥ सातम दिन साखेत में || सु०॥ वावीयें द्रव्य विशेष ॥ स० ॥ सुकृतकर्षण उगीनें ॥ सुप || उपजे धान्य विवेक ॥ स० ॥ ३ ॥ वाड करो तुमें शीलनी ॥ सु० ॥ तस पांखडी चिहुं ठगेर ॥ स० ॥ चोकी वो सही धर्मनी ॥ सु०॥
कोल न करे जोर ॥ स० ॥ ४ ॥ मनरूपी माल बना वियें ॥ सु ॥ बेसी तहां सावधान || स० ॥ विरतिरूपी गोफणे करी ॥ सु० ॥ नाखि यें गोला शान || स० ॥ ५ ॥ दुष्कृत पंखी उमाडीयें ॥ सु०॥ करी निश्चय व्यवहार ॥ स० ॥ पोंक आरोगियें पुण्यना ॥ सु०॥ न वियण थइ हुशियार ॥ स० ॥ ६ ॥ सात नय जाणी तुझें ॥ सु० ॥ तद्रूपी खलां बनाव ॥ स० ॥ करुणारस जल आणीने ॥ सु० ॥ सात नय खलां पिवराव ॥ स० ॥ ७ ॥ जीवदया सगटे जरी ॥ सु० ॥ सुकृत कर्षण सार ॥ स० ॥ संवर बलदनें जो तरी ॥ सु० ॥ पियें खला मऊार || स० ॥ ८ ॥ ध्यानरूपी थंज रोपीने ॥ सु०॥ लयेिं रूपक संयोग | स०॥ जिनवाणा सही जावीये ॥ सु० ॥ हालां अशोक ॥ सभा दुःखरूपी बूरां फाटकी || सु०|| नाखियें दूर सुजाण ॥ ॥ प्रातमबल अंगारमें ॥ सु० ॥ जरजो सुक्कृत ध्यान || स०॥