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सद्यायमाला.
लिया संदेहो रे ॥ ध ॥ ६ ॥ अध्ययनै त्रेवीशमे, जे जे पूहुं तेह रे ॥ गोयम स्वामी सयुं, केशी टलिया संदेह रे ॥ ध० ॥ ७ ॥ मुक्ति ग या दोय गणधरा, जिहां सुखखाण अनंग रे || श्री विजयसिंह सूरीश्वरु, शिष्य उदय रसरंग रे ॥ ध० ॥ ८ ॥ इति ॥
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॥ अथ चतुर्विंश समिति अध्ययन सघाय प्रारंभः ॥ ॥. समिति गुप्ति सूधी धरो ॥ जवि चेतो रे ॥ इम कहे वीर जिनेश ॥ 'नविकचित्त चेतो रे || अध्ययनें चलविश ॥ ज० ॥ ए अधिकार अशेष ॥ ज० ॥ १ ॥ वाटै जोई चा लियें ॥ ज० ॥ जुग लग जयणा काज ॥ ज० ॥ सत्य मधुर हितकारियुं ॥ ज० ॥ वयण जो मुनिराज ॥ ज० ॥ २ ॥ सुडतालीश निवारियें ॥ ज० ॥ एषणा केरा दोष ॥ ज० ॥ पूंजी लीजीयें दीजीयें ॥ ज० ॥ जिम हुवे पुष्यनो पोष ॥ ज० ॥ ३ ॥ मल मूत्रादिक परववो ॥ ज० ॥ पडिले हि शुद्धाम ॥ ज० ॥ मन पडतुं थिर कीजीयें ॥ ज० ॥ जीम सीजे सवि काम ॥ ज० ॥ ४ ॥ मौनी मित जाषियाउ ॥ || निश्चल काउस्सग्गनो जाण ॥ ज० ॥ समिति गुप्ति एम जे धरे ॥ ० ॥ साचा जग जाण ॥ ज० ॥ ५ ॥ विजयदेव गुरु पाटवी ॥ ज० ॥ श्री विजयसिंह सूरीश ॥ ज० ॥ उदय विजय वाचक जणी ॥ ज० ॥ बाल क तास जगीश ॥ ज० ॥ ६ ॥ इति ॥
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॥ अथ पचविंश विजयघोष जयघोषाध्ययन सद्याय प्रांरजः ॥ . || देशी मधुकरनी ॥ वाणारसी नगरी वसे, विजयघोष जयघोष हो । सुंदर ॥ श्रध्ययने पंचवीशमे, दोइ बांजणी निर्दोष हो || सुं०॥१॥ ए दोइ मुनिवर वांदीये ॥ श्रांकणी ॥ जिम सीजे सवि काम हो ॥ सुं० ॥ मुक्तिपुरी मां जे वस्या, गुणमणि अविचल धाम हो ॥ सुं० ॥ ए॥ १ ॥ जयघोषे दी का ग्रही करतो उग्र विहार हो । सुं। एक दिन पहोतो वणारसी, विज यघोष जिहां सार हो || सुं० ॥ए ॥ ३ ॥ विजयघोषें तिहां मां नियो, याग ते महो ममाण हो ॥ सुं० ॥ विहरवा तिहां मुनिवर गयो, उत्तर दिये ते या हो ॥ सुं० ॥ ए ॥ ४ ॥ समजावे मुनिवर कहे, ते प्रतिबोधवा' काज हो ॥ सुं० ॥ वेद जण्या पण तह तणो, अर्थ कहो कु हो ॥ सुं० ॥ ए० ॥ ५ ॥ योग ने नक्षत्रनुं, मुख कहो कवए कहात हो । सुं ॥ धर्मवयण कहो केयुं, तव कड़े विप्र विख्यात हो ॥ सुं०