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सद्यायमाला.
सत्त्व ॥ २ ॥ नाम मात्र निस्केपो तेह, जीवाजीवाकृति उवणे ॥ पयोग द्रव्य अक्षर उच्चार, उपयोगी जावें करि सार ॥ ३ ॥ जीवाजीव चोवीशे स्वाम, ग्वणा प्रतिमा सञ्चयं नाम ॥ जीवा चोवीश, द्रव्य प्रसिद्ध, तदूगुणधारी जाव प्रसिद्ध ॥ ४ ॥ नाम ववणा सुगम व्याख्यान, क्रिया यथास्थित ने अनुमान ॥ अनुपयोगी द्रव्यं वंदन सार, उपयोगी जाव वंदन सार ॥ ५ ॥ जाव विना आलोई द्रव्य, जाव पडिक्कम जावे जव्य ॥ काउस्सग्ग तेम जाणो सार, पञ्चरकाण निक्षेप विचार || ६ || हवे या वश्यक नव संयुक्त, जिण वयणे जवियण सुण तत्त्व | नयविण जाणे ज्ञानी केम, ते उद्यम करीयें जवि जेम ॥ ७ ॥ प्रथम नय द्रव्यार्थिक जाण, तो सवि जीव द्रव्य समाए | सामायिक बोले निशदीस, गुण तो ते हिज द्रव्य सुजगीश ॥ ८ ॥
॥ ढाल पांचमी | साहेंबा मोतीडो हमारो || ए देशी
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॥ संवर रूपें सामायिक अस्ति, अशुनबंध पण करणे नास्ति ॥ साधु जी स्याद्वाद विचारो, जवियां सप्त जंगी धारों ॥ स्वपर कारण स्ति नास्ति वक्तव्य चोथे प्रतिशस्ति ॥ साधुजी० ॥ १ ॥ अति न कद्देवाये समकाल, नबिन कहेवाये ततकाल || बे नचि जाणे न कहेबाय, सप्त जंगी नय शब्द पर्याय ॥ साधु ॥ २ ॥ चजविसवो एहज रीतें, आत्म स्तव तुं जाणे चित्त || सामान्य विशेष गुणने ग्रहीयें, सम्यक्त्वादिक गुण संग्रहीयें ॥ साधु ॥ ३ ॥ आत्मा तो मिथ्यात्वी होये, तेहने स्तवनें शुं गुण होये ॥ व्यवहारें जिनंवर चडवीश, स्तवनें मोक दोये सुजगीश ॥ साधु० ॥ ४ ॥ दवे बोलुं जु सूत्र विचार, वर्त्तमान काले व्यवहार || तीतानागत विद्वानुत्पन्न, सम कार्ले चोवीश प्रसन्न ॥ साधु० ॥ ५ ॥ चोथे निक्षेपे जिनवर धरजो, जंवियण मोक्षार्थी आदरजो ॥ जाव निरकेपें जे पर्याय, तेहने मोह शब्दनय मनाय ॥ साधु ॥ ६ ॥ जे जेहनां रूठें जेम होय, पज्जय तेहना अन्य केम होय ॥ समनिरूढ एवं माने, .स विगुण ऊर्ध्व पजय शिवथानें ॥ साधु० ॥ ७ ॥ आतपएं सघलुं अनु
वतां, एवंभूत ईत तव वदतां ॥ एम वंदण पडिकमण नय जाणो, गीतारथ पासें मन प्राणो ॥ साधु ॥ ८ ॥ कारण पांच मले सहु कोश, निपजे विसे कारज जोइ ॥ एकैके नवि निपजे कृत्य, पांचे मली माने
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