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बारनावनानी सद्याय, (१०), णी ले गया ते, धन विण गले हाथे॥'ए॥३॥ बहु परिवारें म'राचो लोका, मुधा मल्यो सब साथो॥ शधि मुधा होशे सब चिंतो, गगनात णी जिम वाथो॥ ए॥४॥ शांतिसुधारस सरमां कीलो, विषय विषं च निवारो॥ एफपणुं शुन ध्याने चिंती, आप आपकुं तारो॥ ए॥५॥हिं सादिक पा ए जीवो, पामे बहुविध रोगो॥ जलविण जिम माबो एके लो, पामे सुःख परलोगो । ए॥६॥ एकपणुं नावी नमिराजा, मूकी मि थिलाराजो॥ मूकी नरनारी सविसंगति, प्रणमे तस सुर राजो, प्रणमेस कल मुनिराजो । ए॥ ॥ इति चतुर्थी एकत्वनावना संपूर्णा ॥४॥ ॥अथ पंचमी अन्यत्वनावना ॥ ढाल सातमी॥ . ॥राग केदारो गोडी
. 1. ॥ चेतना जागि सहचारिणी, आलस गोदडुं नाखी रे॥हृदयघर ज्ञान
दीवो करे, सुमति उघाडी निज अांख रे ॥ चे ॥१॥ एकशत अधिक अगवना, मोहि रणीया घरवारी रें। सदा तेह विंट्यो रहुँ, तुऊ न चिंता किसि मारी रे॥॥शा जश् मुफ ते अलगो करे, तो रमुं हुं तुऊ साथे रे । तेहथी हुँ अलगो रहुं, जो रहे तुं मुफ हाथे रे ॥ चे ॥३॥ मन वचन तनु सवे इंदिया, जीवथी जूजुआ होय रे॥ अपरपरिवार सव जी वथी, तूं सदा चेतना जोय रे ॥ चे॥ (पागंतरे) तनु वचन सवे इंदिया, जीवथी जूजूया जोय रे । जो रमे तुंणे नावना, तो तुऊ केवल होय रे ॥ चे०॥ ४ ॥ सर्व जग जीव गणि जूजुआ, कोश् कुणनो नवि होय रे ॥ कर्मवशे सर्व निजनिज तणे, कर्मथी नवि तस्यो कोय रे ॥ चे ॥५॥ देव गुरु जीवपणे जूजुश्रा, जूजुश्रा जगतना जीव रे॥कर्मवश सर्व निज निज तणे, उद्यम करे नवि वीव रे ॥ चे० ॥६॥ सर्व शुल वस्तु महिमा हरे, क लियुगो पुष्ट नूपाल रे॥तिम उकालोपि जनने हरे, अपरानी आशमन वाल रे॥ ॥॥ चिंता करे आप तुं श्रापणी, म म करे परतणी आश रे॥आपणुं आचघु अनुजव्यु, विचरि परवस्तु उदास रे ॥ चे॥॥ को किणे जग नवि उमस्यो, उझरे आपणो जीव रे॥ धन्य जे धर्मी आ दर दिये, ते वसे ससमीव रे ॥ चे०॥ए॥जो जुवे जूजुवा आतमा, देह धन जनकथी ध्यान रे॥ते गपुःख नवि ऊपजे, जेहने मन जिन ज्ञान रे ॥ चे॥१०॥ इति पंचमी अन्यत्व नावना ॥ ५ ॥. , .
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