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________________ ( १८४ ) सद्ययमाला. नारीनो संग न करियें, तसे संगें नवि फरियें जी ॥ मार्ग जातां विचार करीने, जंको पाव न धरियें ॥ शा ॥ १२ ॥ उदयरतन वाचक इम बोले, जे नर नारी जणशे जी ॥ तेहना पातक डूरें टलशे, मुक्किपुरी मां मलशे ॥ शा० ॥ १३ ॥ इति स्त्री शिखामण सचाय || ॥ अथ श्री सकलचंद उपाध्यायजीकृत वारजावनानी सचाय प्रारंभः ॥ || ढाल पहेली ॥ रांग रामग्री ॥ स ॥ विमलकुल कमलना इंस तुं जीवडा, भुवनना जाव चित्त जो विचारी || जेणे नर मनुज गति रत्न नवि केलव्युं, तेणे नरनारी मणि कोडि हारी ॥ १ ॥ विमल० ॥ एकणी || जेणे समकित धरी सुकृत मति री, तेणें नरनारी निज गति समारी || विरतिनारी वरी कुमति मति पर दरी, तेणें नरज़ानी सब कुगति वारी || वि० ॥ २ ॥ जैन शासन विना, जीव यतना विनं । जे जना जग जमे धर्महीना ॥ जैनमुनि दान बहुमान हीरा नरा, पशुपरते मरे त्रिजगदीना || वि० ॥ ३ ॥ जैनना देवगुरु धर्म गुण जावना, जावी नितु ज्ञान लोचन विचारी ॥ कर्मजर नाशनी वारवर जावना, जावि नित जीव तुं आप तारी ॥ वि० ॥ ४ ॥ सर्वगतिमांहि वर नरभवो डुल्लहो, सर्वगुण रत्ननो शोधिकार || सर्वजगजंतुने जेथे दित की जियें, सोइ मुनि बंदीयें श्रुत बिचारी ॥ सकलमुनि बंदी यें श्रुत विचार |||||| ॥ ढाल वीजी ॥ राग केदारो ॥ ॥ जावना - मालती चूशीयें, चमरपरें जेण मुनिराज रे ॥ तेणे निज आतमा वालिये, जरतपरें मुक्तिनुं राज रे ॥ जा० ॥ १ ॥ जावना कुसु मधुं वासिया, जेकरे पुण्यनां काज रे । ते सवे अमर तरू परें फले, ना बना दिये शिवराजं रे || जा० ॥ २ ॥ भूमि जननी थकी ऊपना, सुतपरें जे जगें जाव रे ॥ ते सवे तू भुजंगी गले, जिम गले वनतरु दाव रे || जा ॥ ३ ॥ भूमिना वर अनंता गया, भूम निवि गई कि साथ रे || शुद्धिबहु पापी जे तस मली, तें न लीधी कुर्णे साधे रे || जा०||४|| गइय द्वारावती दरि गयो, अथिर सव लोकनी रुद्धि रे ॥ सुणी ते पंवा मुनि हवा, तेणे वरी अचलपद सिद्धिं रे ॥ जा० ॥ ५ ॥ राजना पापजर शिर थकें, जस दवा शुद्ध परिणाम रे || जरतनूप ति परें तेहने, जावना पुण्यनां गाम रे ॥ जा ॥६॥ राजनां पाप जर शिरथकें, जस दवा शुद्ध मन जाव रे ॥ जावनासिंधुमां ते
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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