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________________ - प्रस्तावना - - श्रा सद्यायमाला नामनो ग्रंथ जैनधर्मी श्रावक श्रावीका तथा साधु सा धवीने बहु उपयोगी जे एम तेनी प्रथमनी आवृत्ति उपरथीज सिद्ध थयु बे. कारण के तेमां नक्ति अने वैराग्यने पुष्टि आपनारी तेमज वांचनारा उने हृदयमां आनंद प्रगट करनारी उत्तम सरस सद्यायो दाखल करवा मां आवेली , तेथी ते सर्वेने बहु प्रीय थ पडी जे. जो के जैनधर्मना नक्ति अने वैराग्यमय बीजा बहु ग्रंथोडे पण ते ग्रंथो संस्कृत अथवा प्रा कृत नाषामां होवाथी तेवा ग्रंथो गुरुगम्यता विना जाणी शकाता नथी अने आ सद्यायमाला तो अदरोना जाण कोपण सहेलाथी वांची शके बे, अने तेमां वली नवा नवा रागवाली सद्यायो होवाथी वांचनारने बहु आनंद आपे . आ सद्यायमालानी प्रथम आवृत्ति उपावी त्यारे तेमां जे जे उत्तम अ ने शांतरसमय सघायो हती ते ते दाखल करी हती अने ते सद्यायोनी संख्या पण कांडी नहोती. आशरे (५२१) सद्यायो हती. तेज सद्या यो सुधारा वधारा साथे आ बीजी आवृत्तिमां पण दाखल करी . अमारा जैनधर्मी नाश्योने तेमज बाश्योने सद्यायो वांचवानो घणो अ ज्यास होवाथी तेजेए अमारी पाले प्रथमनी आवृत्ति पुरी थवाने लीधे बीजी आवृत्ति बापवानो आग्रह करवाथी तेमज बहु साधर्मी बंधुरी तरफ थी तेनी मागणी थवाने लीधे अमे सद्यायमालानी आ बीजी आवृत्ति उपावीने प्रसिद्ध करेली अने वली ते प्रथमनी आवृत्तिनी माफक शा स्त्री अदरोथीज बपावी बे; कारण के साधु साध्वी तेमज मारवाड तथा दक्षिण विगेरे देशोमां निवास करनारा अमारा साधर्मी नाश्योने तेमज बाश्योने शास्त्री अक्षरोना ग्रंथो वांचवानो परीचय होय . वली अमा रा कब काठीयावाड तथा गुजरात देशमा वसनारा साधर्मी नाश्यो तथा बाश्योने पण शास्त्री अदरो वांचवानो अभ्यास होय , तेथी ते सर्वेने उपयोगमां आवे एम धारी शास्त्री अक्षरोधीज उपावी .
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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