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सद्यायमाला..
छिकार ॥ पारी कहीय लोगस्स मंगल उपाय, खमासमण दोइ देहीने करे सद्याय ॥ ४॥ जाव पोरिसी नूल विधि होसद्याय, उत्कृष्ट ते द शांगी अध्याय ॥ परिहाणिथी जाव नमुक्कार हो, सामाचारि वश पंच गाथायलोई ॥५॥ कही पडिकमणे पंच आचार सोही, तिहाँ दीसए तिएह पुए ण होही ॥श्यु पनणि तप वीर्य आचारशुद्धि, अवश्य हुई जो होई त्रिक विशुधि ॥६॥प्रतिक्रमण पञ्चरखाण चनविहार मुनिने, यथाशक्ति पञ्चरकाण श्रावक सुमननें ॥ काउस्संग्ग अंतरंग तपनो आचा रे, वली.वीर्य नो फोरवे शक्तिसारे॥७॥ प्रतिक्रमण पदथी क्रिया कर्तृ । कर्म, जणाश तिहां प्रतिक्रमण क्रियामर्म ॥ प्रतिक्रमण कर्त्ता ते साध्या दि कहियें, सुदृष्टि सु उपयुक्त यतमान लहियें॥॥प्रतिक्रम्य ते कर्म क्रोधादि जाणो, टले तेह तो सर्व लेखेप्रमाणो मिले जो सुजन संग दृढ रंग प्राणी, फले तो संकल का ये सुजस वाणी । ए॥ .. _* ॥ ढाल सातमी। जू जून अचरिज अतिनढुं॥ए देशी । * ॥ देवसी पडिकमण विधि कह्यो, कहे हवे राश्नो तेह रे ।। इरिय पंडि कमिय खमासमणझुं, कुसमिण उंसमिण जेह रे ॥ १॥ चतुरनर हेतुम न नावजो॥ ए आंकणी ॥ तेह उपशम काउस्सग्ग करो, चार लोगस्स मने पाठ रे ॥ दिहिविपरियास सो उस्तासनो, धी विपरियास शताठ रे॥ च॥२॥ चिश्वंदन करिय सद्याय मुख, धर्म व्यापार करे ताव रे ॥ जांव पडिक्कमण वेला हुये, चउ खमासमण दीये नाव रे ॥ च०॥३॥ रापडिकमण गडं श्म कही, सवस्स वि राइ कहेरे । सकबय जणी 'सामायिक कहि, उस्सग्ग एक चिंतेरे॥॥॥ बीजे एक दर्शनाचार नो, त्रीज अतिचार चिंत रे ॥ चारित्रनो तिहां एक हेतु , अल्प व्यापा र निसि चित्त रे ॥ च॥५॥ पारी सिहस्तव कही पड़े, जाव काउस्सग्ग विहि पुत्र रे॥ प्रत्येक काउस्सग्ग पडिकमणथी, अशुधनो शोध ए अपुत्व रे ॥चण॥६॥ हां वीर उमासी तप चिंतवे, हे जीव तुं करी शके तेहरे
॥न संकुं एगा श्गुणं तीसतां, पंच मासादि पण जेह रे॥चणाला एक |मासं जावतेर ऊंणडो, पढ़े चजत्तिस मांहि हाणी रे॥ जा चउथ अंबि ल पोरिसी, नमुकारसी योग जाणी रे॥च॥ ॥शक्ति तांई चित्त ध री पारीयें, मुहपत्ती वंदण दाण रे ॥ श्लामो अणुसहि कही तिगथुश,
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