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नपदेश बत्रीशीनी सद्याय.
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दी मन उससे, जोतो दियडष्टुं हींसें रें ॥ नमो ए॥षधि कहेज वियण तुमें, म करो मोह विकारो रे ॥ तो तुमें मनक तणी परें, पामो सदगति सारो रे ॥ नमो० ॥ १०॥ इति मनक मुनीनी सद्याय ।।.
॥अथं उपदेश पत्रीशीनी सद्याय प्रारंजः ॥ . . ॥ आतमराम सखने तुंतो जूते चरम सुखाने ॥ जूठे नरम जुलाने, तूंतो जूठे नरम पुलाने ॥ आण॥ ए बांकणी ॥ किसकिमा किसके ना किसके दोग सुगाश्वी । तुं न किसीका को नहीं तेरा, थापो श्राप सहायातम० ॥१॥ चारदिनोको सवहे मेखा, थिर कोइन रहा जी इटवाडे ज्युनिया सवहीं, मिलि मिलि था जा॥था०॥२ । मंदिर मेडी महेख चपावे, जालिधंध जरुखा जी ॥ जंगल पाउं पसा रके पडना, धरमा कलु न धोखा ।। आ॥३॥ पघडी खूब इजार उप टा, जामा जरकसी वागा जी ॥साज सविहां जन चलेंगा, धागाबिनु तनु नागा ॥आ॥४॥ सहस्सही जोडी लखनी जोडी, अरव खर पकुं ध्याया जी ॥ तृष्णा लोन पलिता लाया, फरि फरि ढूंढे माया ॥श्रा॥५॥ चूवा चंदन फूल फूलेलें, करता है खुसवोर जी ॥ हंस उडे तब गिरे जमीपर, तन वगदोश हो। आ॥६॥ या संसार सरा हिमांड्यो हे, घरघर संखचोरासी जी ।। नामकरम घर सवहीं चूंणे है, जीव वटाउवासी । श्रा० ॥ ७ ॥ लोही मांस वनीया है गारा, परहाड लगा जी ॥ ऊपर लेपन चमडी खाइ, श्रोतबार देखा । आ॥॥ श्रायु करम घरका नाडा, दिन दिनका करिखेखा जी ॥ महलथि पु ग्यां पलक न राखे, ऐसा वडा अदेखा ॥ श्रा०॥ए। सांज सवेर अवेर न जाने, नगिने धूप अरु वरखा जी ॥ न गिने नेह मुलाजा किसका, आयु सवोकुं सरिखा । आ॥१०॥जीव वटाऊ के फिर होवे, कर्म बनकारा संगी जी।। जाइ अगाऊ गेह वनावे, प्रीति वनावे चंगी था॥११॥ जवलग घनमें आप वसेहें, तवलग प्रीति बनावो जी। मुथापि तुंगा। ढ.जलेगे, जावे नीर बहावो । आ॥१५॥ जिस घर थंदर थाइ चढा हे, सो घर नाही तेरा जी ॥ ऐसेसे घर बहुत वनाए, राह चलत ज्यु देरा आ॥ १३॥ जिस घरकुंजग गेड चलाहे, तिसकी चित्त न आ नी जी॥ नवि नवि फिर माया जोडी, तोडी प्रीत पुरानी ॥ आप ॥१४॥
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