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सद्यायमाला.
जिम अज्ञानी ज्ञान ॥१॥लिखित पत्र देखाडियु, प्रगट्यो अधिक नन्हा॥ ह॥ चिर विलोकित खप्न परें, पुत्रीनो वीवाह ॥५॥ __ ॥ ढाल-त्रीजी॥ .
. . . ॥ ॥ कडखानी देशी ॥ नृपती आणा सही तेडियो तिहां वही, सुबुद्धि परधान नृप मान पामी ॥ सार श्रृंगार वर हार पहिरावीयो, आवीयो नृपतिपद शीश नामी॥१॥जयो कुमर सिरताज महाराज सुत जगज यो, जे थयो सकल विज्ञान वेदी॥ सचिव कहे नृपति सुण एह सुत तुम्ह तणो, अम्ह तणो शीखव्यो बाण नेदी॥जणा॥ हृदय आलिंमियो मस्त के चुंबियो, थापीयो कुमरने निज उबंगे। एह निवृत्तिवरा पंश उजाल करो,, जय वरो एण उगमे प्रसंगें । जयो ॥३॥ तातवाणी लही धनुष शर संग्रही, तिहां वही आवीयो थंज पासे ॥ वंदिया निजकलाचार्या नंदिया, सजना बहुजना मन विमासे ॥ जयो॥४॥बंधु बावीस धरी, रीस मनमा हसे, अमथकी अधिकशुं एहं दीसे ॥चार दासे दासेरपरें बुरबरे, हाथ ताली दीये दांत पीसे ।।जयो ॥५॥ विकट दोश् सुजट वि हुँ पास ऊना किया, हृदय मघर धरी खज हाथें ॥ वाण-शरं मूकता जो विचें चूकता, कालजो एहने जोर बाथें ॥जयो॥६॥ धनुषनी पण पूजी अधूजे मनें, बाण तीखो तस अगनि जोड्यो ॥ तैलप्रतिबिंब अ विलंब राधा प्रत्यें, बाल ततकाल तिहां बाण बोड्यो | सकल नरपति तणो मान मोड्यो ॥ जयो॥७॥ वक्र अ चक्र उलंघ्य लघु लाघवी, कलथकी बाणगति सरल कीधी। जाणीये सापराधा यथा राधिका, पूत ली वामदृग तुरत वींधी ॥ जयो ॥ ७॥ सयण आवी मिट्या मुष्ट रेट व्या, कुसुमनी वृष्टिशुं सुर वधावे ॥ निति बालिका कंठ वरमालिका, थापती जमर रवि गीत गावे ।।जयो॥ ए॥ नूप मन हरखीयो सुतरयण परखीयो, सुबुझिने शछि बगसीसदीनी ।। सुजस जयवाद में पामीयो नृपतिमां, आज ए सहाय तें सबल कीनी ॥जयोणारा एम अनन्न्यास वश साधवो दोहिलो, वेध राधातणो मेरुतोले । हीनपुण्यें तथा नरजवो दोहिलो, धीर गुरुसीस नय सुकवि बोले||जयोगा॥ सर्व गाथा ॥पना
॥दोहा॥ राधावेंधतणो कहुं, अंतरगत सुविचार ॥ आवश्यकनी चूर्णिमा, उपनयनो अधिकार ॥१॥
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