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दशदृष्टांतना उपनयनी सद्याय,
(१)
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चाल्यो, उद्देशी को गाम ॥३॥ढाल ॥ वेना तटवाटें, मलीयो बंगण एक ॥ तेह साथै चाख्यो, विणसंवल सुविवेक ॥ उदरंजरिबंजण, जोजन करवा काज ।। सरपालें बेगे, काढी साथुआ साज ॥ त्रुटक ॥ साथु साजें निर्लजने वंजण, कुंवरने नवि संजलावे ॥ निघृण शर्म निज नाम यथार
थ, लोकें कीधुं पावे ॥ एणीपरेंत्रण्य दिवसनो चूख्यो, अटवीथी ऊतरियो | मूलदेव जोजनने हेते, वसतीमां संचरियो । ढाल || वाटे एक गामें, को कुलपतिने धामे ॥ जोजनने कामें, वेठोकरी विश्राम ॥ मनमाहे चिं ते, संत होये जो कोय ॥जश् तेहने याचु, उदरपूर्ति जिम होय ॥त्रुटक॥ उदरपूर्ति करवाने काजें, एकघरे फरता दीगडद वाकुला निचकनी परें, मोदकथी पण मीठा ॥ तुधित थकोपण निश्चल चित्ते, वाकुल लेश वलीयो॥ निर्मलनीर सरोवर तीरें, वेगे पुण्ये बलीयो ॥५॥ इति ॥
॥ ढाल वीजी॥ ॥ चतुरसनेही मोहना ॥ ए देशी ॥ मूलदेव मन चिंतधे, ए कुलमाष | में पाया रे ॥ लाख पसायतणी परें, मोदकथी सुखदायारे॥ ॥१॥ किहां मुज राज्य पितातएं, किहां उणि विलासो रे॥ किहां ए लिख कुलगामनी, ए सवि कर्मविलासो.रे ।। मू॥२॥ एक दिवस पण ते हतो, देतो वहुने अनोरे ॥ एक दिवस पण एह , उदर जरण असम बोरे ॥ मू॥३॥ अहम अंते पामीया, रंक परें केम खाउं रे ॥ नितु कने आपी न, जेहवं तेहवु खाऊं रे ॥ मू॥४॥ एह जाग्य किहां थकी, साधु सुपात्र लहीजें रे ॥था अवसर नहिं तेहवो, तो पण देश ज मीजें रे ।। मू० ॥ ५॥ एम चिंतवतां पुण्यथी, मासोपवासी मुर्णिदो रे ॥ पुण्य पुंज आयो तिहां, मलपतो जाणे गयंदो रे॥ मू॥६॥अज गमें गज मुज मल्यो, पर गमें रयणां रे॥जल गमें अमृत मित्यु, एम उच्चर तो वयां रे ॥ मू॥७॥ राज्य रोरसुत रिंजियो, जडश्रुत अंध जिम || निरखे रे॥ मूंगो वचन लही यथा, तेणीपरें मनमां हरखे रे॥॥७॥ तुम सरखी निदा नथी, पण मुज नाव अपारो रे॥ ग्रहो कृपा करो अनु ग्रह करी, मुज गरिव निस्तारो रे ।। मू॥ए॥ उरित समुज्ने तारवा, पात्रपोत तेणें धरीयो रे॥ अनाकुलमने वाकुला, देतां चित्तथु गरियु रे॥ मूण् ॥ १०॥ सुरवाणी आकाशथी, थ तस पुण्यनी साखी रे ॥जे याचे
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