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दशदृष्टांतना नपनयनी सद्याय.
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दोहिलो फरो लेहवो, नय कहे सुविनीत ।। ए॥४॥ सर्वगाथा ।।७।।
॥ दोहा ।। । । ए पाशक दृष्टांत, कयुं संदपि चरित्र ॥ अंतर्गत उपनय कहुं, एहनो अडे पवित्र ॥१॥
॥ ढाल वीजी॥ ॥ए हिंमी किहां राखी । ए देशी ॥ चाणायक सम चारित्र जूपति, निर्मल मति गुणखाणी ॥ कर्मनृपति पासे ते मागे, एक संसारी प्राणी रे ॥२॥ नविका ए उपनय चित्त धारो, तुम्हें मानव नवमत हारो रे॥जणा वली समकित तत्व विचारो रे ॥ जण ॥शा ए आंकणी ॥ते प्राणीने यतने राखे, संकल कला शीखावे, शास्त्र जणावी समकित केरी, सिंत समशेर बंधावे रे ॥३०॥३॥ नंदपरें नव नरपति जाणो, आठ करम मिथ्यात। घर निकंदी विरतिपुरीd, राज लहे सुविख्यात रे ।। ज०॥४॥ श्रीजि नपर अनुकूलपणाथी, शुजयोगें उपन्ना ॥अनुपम समकित चारित दोश, पाशा गुण निपन्ना रे ॥ ज॥५॥ नाणनंमार जरेवा कारण, सोवन था ल विवेक ॥ मांनीने नितु रामत रमते, जीत्यो सघलो लोक रे ॥ना|| इणिपरे सुजस लह्यो तिथि सघले, उत्तम नरजव पामी ॥ अकल अरूप अने अविनाशी, होवे अंतरयामी रे ॥३०॥७॥ धीरविमल गुरुराज पसायें, ए उपनय एम दाख्यो । नय कहे ए परिणतिमा रमतां, सरस सुधारस चाख्यो रे॥ ज०.|| सर्वगाथा ॥ १५॥ इति नरजव दशह ष्टांताधिकारे पाशकनामा द्वितीयदृष्टांतः सद्याय समाप्तः॥२॥ ॥अथ धान्यराशिनामा तृतीयदृष्टांतस्वाध्यायः प्रारज्यते ॥: ।
॥दोहा।। ॥ क्षेत्र जाति कुख कर्म तिम, नाषा दर्शन शान ॥ चारित्रने विज्ञान तिम, ए नव आर्य प्रधान ॥१॥ मानवनव विणुं ए नहिं, तिणेकरी उत्तम एह ॥ कहुं उपनय त्रीजो हवे, धान्य राशिनो जेह॥२॥
॥ ढाल पहेली। • ॥ हो मत वाले साजनां ॥ ए देशी ॥ जंबूझी जरतमां, घन घनने परजा जी ॥ शुद्ध सुगाल सुवायथी, अन्न जातिवहु थाये जी ॥१॥ नरजव सुरमणि सारिखोः॥ पामीने म म हारो जी ॥ फरी फरी लेहवो दोहिलो, जिम पंगुल जलनिधि पारोजीना राशि करीजें धान्य
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