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________________ ( १०५) संघायमाला. मां श्रौषधमां जिम यन्न ॥ दातामां जिम जलधरु, जिम पंक्तिमा मन्न ॥ ६ ॥ महगणमां जिम चंद्रमा, मंत्रमांहि नवकार ।। संघला जवमांहे ज लो, तम नरजव अवतार ॥ ७ ॥ बोधिलाज नीमीसमो, बोल्यो नरजव एह ॥ ते हास्यो नवि पामीयें, जिम निधि दुर्गति गेह ॥ ८ ॥ विप्रं जिमण तिम पांशका, धान्यराशि ने जूा । रयण सुमिलने चक्र हरि, कूंसर पर माय ॥ ए ॥ विप्र जमणनो दाखीयो, पहेलो जे दृष्टांत ॥ सुणजो तेह कहुं हवें, आलस मूकी संत ॥ १० ॥ ॥ ढाल पहेली ॥ -॥ राग गोडी ॥ ऊकडीनी देशी ॥ कंपिल पुरवंर राजियो, इरकाग वंश दीदो जी ॥ नामें बंजनरेसरू, चुलणी देवी इंदो जी ॥ १ ॥ त्रुटक ॥ द रिगीत बंद || मुखचंद चउदस सुमिए सूचित, सहसा लक धरू संभूति मुनिनो जीव तस सुत, ब्रह्मदत्त नामें वरू || अनुक्रमें मस्तक शूल रोगें, पिता परलोके गयो | तस राजकाजें मित्र तेहनो, दीर्घपृष्ठ भूपति थ यो ॥ १ ॥ चंचल चित्त चुलणी थई, दीर्घ नराधिप संगे जी ॥ लोपी ला ज ते कुणी, सेवे विषय प्रसंगे जी ॥ त्रुटक ॥ प्रसंग वर घणुं ताम सचिवरे, अनाचार तेहनो लह्यो ॥ दृष्टांत दूध बिलाड केरो, कुमरनी आगल को || को किला वायस हंस लायक, हाथणी खर जिम रमे ॥ ह ष्टांत समंजस देखाडे, कुमर ते एकण समे ॥ २ ॥ जावी चक्री कुमरने, देखी मनमांहे कंपे जी । एक दिन ते चुलणी प्रत्यें, लंपट एम पपे जी ॥ त्रुटक ॥ इम पपे सुपो चुलणी, मुज बे जय तुज सुत घणा ॥ निःशं क सघलां विषयसुख, पूरियें मनकामणा ॥ बल नेद दाय उपाय कर तां, ब्रह्मदत्त सुत जो मरे, धिक कामने गत माम चुलणी, वयण ते गीकरे || ३ || मोहोटो एक मंगावीयो, लाख तम्रो आवासो जी ॥ बल विवाह त करी, नवपरिणीत स्त्री पासो जी ॥ त्रुटक ॥ वी सास आणी मांहि पोढ्यो, दीपयोगें ते गले ॥ सुरंगमांहे सचिव वर, कुमरनी पासें मिले || पाहनी प्रहारें गंगतीरें, अश्वयोगें निकल्या || पंचास जोयण अटवी आपद गया बेहु, दुष्टदी हा जय टल्या ॥४॥ पुण्य बलें ते ऊतस्या, रूप जी ॥ कुमर वैताढ्य गिरें गयो, तिहां विद्याधर जूपं जी ॥ त्रुदक ॥ तिरूप कुमरी जाणे मरी, नृपति विद्याधर तणी || बहु तिहाँ परणी
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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